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________________ वंदित्तु सूत्र लगता है, परंतु सचित्त है ऐसी जानकारी होते हुए भी उसका उपयोग किया जाए तो व्रत भंग होता है। १६६ अपोल (अपक्वौषध्याहार) - नहीं पकाया हुआ आहार । अग्नि से संस्कारित नहीं किए गए गेहूँ आदि धान्य का आटा सचित्त होता है, उस को अचित्त मानकर उपयोग करना, यह तीसरा अतिचार हैं। अनाज को पीसकर उसका आटा बनाया हो तो भी वह आटा कुछ समय तक सचित्त रहता है। इस बात का ख्याल न होने से अब वह अचित्त हो गया है, ऐसा मानकर उसका उपयोग करने से सचित्त त्यागी को अतिचार लगता है। इसलिए जिसने सचित्त का त्याग किया हो उसको ऐसी हरेक बात का ख्याल रखना चाहिए। दुप्पोलिअं च आहारे (दुषपक्वौषध्याहार) - अधपका पकाया हुआ आहार । अर्ध भुंजे हुए पोंक, चने तथा मूंगफली आदि को अचित्त मानकर उपयोग करना यह चौथा अतिचार है। तुच्छोसहि-भक्खणया - जिसमें खाने का थोड़ा हो और फेंकने का अधिक हो ऐसी तुच्छ औषधि आदि को खाने से। सीताफल आदि तुच्छ फलों का अथवा मूँग, चोलाई, फली आदि की कोमल गुदा (शींगो) को भक्षण करने से यह अतिचार लगता हैं। ऐसी वनस्पतियों को अचित्त करके उपयोग करे तो भी दोष लगता हैं। तुच्छ फलों में खाने का कम होता है और कोमल फली शींग आदि से मात्र स्वाद ही पुष्ट होता है, अत: अचित्त भोगी को ऐसी अचित्त वस्तुएँ भी छोड़ देनी चाहिए । 'मुझे तो सचित्त का त्याग है, अचित्त की छूट है,' ऐसा मानकर अगर उनका उपयोग किया हो तो व्रत का भंग नहीं होता, परन्तु आसक्ति घटाने का व्रत का मूल ध्येय चूक जाने से दोष - अतिचार तो अवश्य लगता है। भोग्य चीज़ों के बारे में ये पाँच अतिचार बताएँ हैं। वैसे ही वस्त्र, अलंकार आदि उपभोग्य चीज़ों में भी यह मर्यादा बाँधकर, उनमें भी अतिचार न लगे उसकी विशेष सावधानी श्रावक को रखनी चाहिए।
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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