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________________ १६४ वंदित्तु सूत्र • अपना स्वभाव ज्ञानादि गुणों को भोगने का है, जड़ वस्तु को भोगने का नहीं। जड़ वस्तु का भोग तो शरीर और इन्द्रियों के कारण करना पड़ता हैं। • विषयों की आसक्ति के कारण हमको हरेक प्रकार का पाप करना पड़ता है और इस कारण ही स्नेही, स्वजनों के साथ क्लेश होता हैं। • विषयों की आसक्ति कषायों का उद्गम स्थान हैं। + इच्छित विषयों के न मिलने पर ही क्रोध आता हैं। + इच्छित विषयों के मिलने पर दूसरे की अपेक्षा मैं कुछ विशेष हूँ - ऐसा मान होता हैं। + मनोज्ञ विषयों को प्राप्त करने एवं रक्षा करने में माया करनी पड़ती हैं। + विषय का सुख एक बार प्राप्त होने के बाद वह बारबार प्राप्त करने की इच्छा स्वरूप लोभ की सतत वृद्धि होती हैं। • मनोज्ञ विषयों के प्राप्त होने पर राग अधिक दृढ़ बनता हैं। उससे गाढ़ कर्मों का बंध होता हैं। विषयों का सुख विषमिश्रित स्वादिष्ट भोजन जैसा हैं। वह देखने में तो अत्यंत रमणीय लगता है परंतु परिणाम प्राणघातक होता हैं। • विष तो द्रव्य प्राणों का नाश करके एक भव बिगाड़ता है, जबकि विषय तो भावप्राण का नाश कर भवोभव बिगाड़ने का काम करता हैं। • विष तो जीभ के साथ स्पर्श के बाद मारता है जबकि विषय का तो विचार मात्र भी मारता हैं। • विषय, कषाय को जानकर उनमें वैराग्यभाव पैदा करने के लिए हरेक श्रावक को इन्द्रिय पराजय-शतक, वैराग्य शतक, ज्ञानसार, योगशास्त्र - चौथा प्रकाश, अध्यात्म कल्पद्रुम, शान्त सुधारस जैसे ग्रंथों का सतत श्रवण, मनन, चिंतन करना चाहिए। उसके द्वारा मन को ऐसा तैयार करना चाहिए कि मन वैषयिक भावों से परे होकर आध्यात्मिक भावों में विचरण करे एवं उसी में लीन रहे।
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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