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वंदित्तु सूत्र
चौदह नियम लेने वाला श्रावक सोचता है कि दुनिया भर के भोगपदार्थों में से मैं मात्र बिन्दु जितना ही भोग करता हूँ, परंतु सर्व पदार्थों को भोगने की, उसके द्वारा सुख प्राप्त करने की अव्यक्त इच्छा तो मुझ में पड़ी ही है। निमित्त मिलने पर, शक्ति एवं संयोग प्राप्त होने पर, ये इच्छाएँ कभी भी व्यक्त हो जाती हैं, तब मेरा अनियंत्रित मन, यहाँ-वहाँ अथवा किसी भी वस्तु के, भोग के लिए ललचा जाता है । इस चंचल एवं लालची मन को नियंत्रित करने के लिए मुझे यह व्रत तथा चौदह नियमों का स्वीकार करना हैं।'
अभी तक मेरे मन पर कोई काबू नहीं होने के कारण दुनिया भर की चीज़ों के साथ मेरा संबंध रहता हैं। उनसे संबंधित विचार एवं चिंतन भी चलता रहता है। मैं जानता हूँ कि मात्र काया के भोग से कर्मबंध होता है ऐसा नहीं है, परंतु भोग संबंधी बातों या विचारों से भी कर्मबंध चालू ही रहता है। इस कर्मबंध से अपने १०) विलेपन : शरीर को लगाने वाले साबुन-तेल-दवा आदि का वजन निश्चित करना। ११) ब्रह्मचर्य : दिन के समय पूर्णतया ब्रह्मचर्य तथा रात्रि के समय में पूर्ण अथवा अमुक
समय का नियम लेना। १२) दिशा : आने-जाने की दिशा का नियम लेना। १३) स्नान : स्नान करने की संख्या निश्चित करना। १४) भक्तपान : खाने-पीने की चिज़ो का वजन निश्चित करना।
चौदह नियम करने के उपरांत विशेष धारणा १) पृथ्वीकाय - मिट्टी-खार, नमक आदि का वजन निर्धारित करना। २) अप्काय - कच्चा पानी आदि का प्रमाण बाल्टी अथवा वजन से निर्धारित करना। ३) तेउकाय - बिजली-चूल्हा आदि के नियम लेना। ४) वायुकाय - पंखा-झूला आदि की संख्या निश्चित करना। ५) वनस्पतिकाय - हरी सब्जी, फल आदि की संख्या निश्चित करना। ६) त्रसकाय - चलते-फिरते जीवों की जयणा करना। ७) असिकर्म - हथियार, चाकू, कैंची आदि की संख्या का नियम लेना। ८) मसिकर्म - लिखने के साधन जैसे पेन-पेंसिल आदि की संख्या निश्चित करना। ९) कृषिकर्म - खेती के साधन जैसे हल-कुदाली-फावड़ा वगैरह की संख्या का नियम
. लेना। चौदह नियम विषयक विशेष जानकारी गुरूभगवंत से लेनी चाहिए।