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पंचम व्रत
अवतरणिका :
अब पाँचवे व्रत का स्वरूप तथा अतिचार बताते हैं। गाथा:
इत्तो अणुव्वए पंचमम्मि आयरिअमप्पसत्थम्मि। परिमाणपरिच्छेए,इत्थ पमायप्पसंगेणं।।१७।। अन्वय सहित संस्कृत छाया : इत: प्रमादप्रसङ्गेन अप्रशस्ते अत्र पञ्चमे अणुव्रते,
परिमाणपरिच्छेदे अतिचरितम् ।।१७।। गाथार्थ :
अब (चौथे व्रत के बाद) इस पाँचवे अणुव्रत के विषय में, प्रमाद में आसक्त होने से जब अप्रशस्त भाव का प्रवर्तन हो तब यहाँ पाँचवे अणुव्रत के विषय में प्रमाण का परिच्छेद करने रूप जो कोई विपरीत आचरण किया हो (उन सबका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ)।