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________________ द्वितीय व्रत गाथा- ११ १०५ विशेषार्थ : बीए अणुव्वयम्मी, परिथूलग- अलिअवयण-विरईओ - दूसरे अणुव्रत में स्थूल झूठ बोलने की विरति (का उल्लंघन करने) से। द्वितीय व्रत का स्वरूप : सम्यक्त्वमूलक बारह व्रतों में द्वितीय व्रत 'स्थूलमृषावादविरमण व्रत' है। स्थूल' अर्थात् बड़ा एवं मृषावाद का अर्थ झूठ बोलना है। क्रोध से या लोभ से, भय से या हास्य से अथवा किसी भी प्रकार के कषाय अथवा नोकषाय के वश होकर स्व-पर पीड़ाकारी झूठ बोलना तो असत्य है ही, परंतु ऐसे कषाय के अधीन होकर बोला हुआ सत्य वचन भी मृषावाद है। 1. तत्र द्विविधो मृषावाद: स्थूलः सूक्ष्मश्च। तत्र परिस्थूलवस्तुविषयोऽतिदुष्टविवक्षासमुद्भवः स्थूलः, विपरीतस्त्वितरः, न च तेनेह प्रयोजनम्, श्रावक-धर्माधिकारात् स्थूलस्य प्रक्रान्तत्वात् । असत्य वचन दो प्रकार का है : १. स्थूल असत्य और २. सूक्ष्म असत्य। उस में बड़ी बहुमूल्य वस्तुओं के प्रति बोला जानेवाला या जो बोलने से, बोलने वाले एवं अन्य को बहुत नुकसान हो, ऐसा असत्य वचन अति दुष्ट आशय से बोला जाता है। इसलिए उसे 'स्थूल असत्य' कहते हैं एवं इसके विपरीत मात्र हँसने के लिए या मजाक आदि के लिए झूठ बोले तो वह 'सूक्ष्म असत्य' है। ___ - श्रा. ध. वि. प्र. गा ८९ 2. से कोहा वा लोहा वा भया वा हासा वा नेव सयं मुसं वएना - पक्खिसूत्र 3. अलियं न भासिअव्वं, अत्थि ह सचं पिजं न वत्तव्यं । सचं पितं न सच्चं, परपीडाकरं वयणं ।।१।। - श्री संबोध प्र. श्राद्धव्रताधि. गा. १६ जिस प्रकार झूठ नहीं बोलना चाहिए, उसी प्रकार कभी-कभी सत्य भी बोलने योग्य नहीं होता, क्योंकि स्वरूप से सत्य होते हुए भी जो वचन दूसरों को पीड़ा दे वे सत्य नहीं होते। जेण भासिएण अप्पणो वा परस्स वा अतीववाघाओ अइसंकिलेसो वा जायते, तं अट्ठाए वा अणट्ठाए वा ण वएज ति॥ ___ - आवश्यकचूर्णि पृ. २८५ जो वचन बोलने से खुद को अथवा दूसरों को अतिशय व्याघात हो अथवा अत्यन्त संक्लेश का अनुभव हो, उन वचनों को सकारण या निष्कारण किसी भी प्रकार नहीं बोलने चाहिए। प्रियं पथ्यं वचस्तथ्यं सूनृतव्रतमुच्यते। तत् तथ्यमपि नो तथ्यमप्रियं चाऽहितं च यत्।।१-२१॥ - योगशास्त्र प्रिय, पथ्य एवं तथ्य वचनों को सुनृत (सत्य) व्रत कहते हैं। जो अप्रिय या अहितकर हो वह तथ्य (सत्य) भी तथ्य (सत्य) ही नहीं।
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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