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द्वितीय व्रत
अवतरणिका:
अब द्वितीय व्रत का स्वरूप तथा उसके अतिचार बताते हैं - गाथा: बीए अणुव्वयम्मी, परिथूलग-अलिअवयण-विरईओ।
आयरियमप्पसत्थे, इत्थ पमायप्पसंगेणं ।।११।। अन्वय सहित संस्कृत छाया: . प्रमादप्रसङ्गेन अप्रशस्ते, अत्र द्वितीये अणुव्रते।
परिस्थूलक-अलीकवचनविरतित: अतिचरितम्।।११।। गाथार्थ :
प्रमाद के कारण अप्रशस्त भाव प्रवर्तते हुए दूसरे अणुव्रत में झूठ बोलने की विरति (का उल्लंघन करने) से इस व्रत विषयक (दिनभर में) जो कोई विपरीत आचरण हुआ हो (उन सबका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ)।