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सात लाख सूत्र
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सात लाख तेउकाय : तेउकाय जीवों की योनि सात लाख है। जिनका शरीर अग्निरूप है वैसे जीवों को तेउकाय कहते हैं । शास्त्र में उनके उत्पत्ति स्थानों के सात लाख प्रकार बताए गये है । तेउकाय जीव भी उपर कहे अनुसार दो प्रकार के होते हैं । उनमें बादर तेउकाय जीव अड्डाई द्वीप की पाँच कर्मभूमि में ही जिनेश्वर भगवान के काल में ही होते हैं । अंगारा, ज्वाला, भट्ठीं, बिजली, घर्षण से प्रकट होने वाली अग्नि, इलेक्ट्रीसिटी वगैरह तेउकाय के अनेक प्रकार हैं ।
वर्तमान में अनेक तरीके से जो इलेक्ट्रिसिटी का उपयोग होता है, पेट्रोल या अन्य किसी ईंधन द्वारा जो अग्नि पैदा होती है, वह अग्निकाय का ही शरीर है । उसका जो अनियंत्रित उपयोग होता है उससे अग्निकाय जीवों की बेसुमार हिंसा होती है, क्योंकि अग्नि के एक तिनके में रहनेवाले जीव यदि पोश्ते के दाने (Poppy Seeds) जैसे बड़े हो जाएं तो जम्बूद्वीप में नहीं समा पाएंगे । इस पद को बोलते समय उन जीवों को दी हुई पीडा को याद करके उन जीवों के साथ क्षमापना करनी चाहिए।
सात लाख वाउकाय : वायुकाय जीवों की योनि सात लाख है । जिनका शरीर वायुरूप है, उन जीवों को वाउकाय कहते हैं । उनके भी दो प्रकार हैं : सूक्ष्म एवं बादर । उसमें बादर वाउकाय जीव चौदह राजलोक में फैली हुई हर खोखली जगह में होते हैं । उसके भी शुद्ध वायु, बहता वायु, मंडलीक वायु, चक्रवात वायु वगैरह अनेक प्रकार हैं। अजयणा पूर्वक हलनचलन करते हुए, झूलते हुए, पंखे वगैरह का उपयोग करते हुए असंख्य वायुकाय जीवों का उपघात होता है । शास्त्र में कहा है कि, नीम के पत्ते के बराबर जगह में रहे हुए वायुकाय' के जीव अगर बालों में उत्पन्न होनेवाली लीख के शरीर 6 - बरंटतंदुलमित्ता, तेउकाए हवंति जे जीवा । ते जइ खसखसमित्ता, जंबूदीवे न मायति ।।१६।।
- संबोधसत्तरि 7. जे लिंबपत्तमित्ता, वाऊकाए हवंति जे जीवा । ते मत्थयलिखमित्ता, जंबूदीवे न मायंति ।।९७ ।।
- संबोधसत्तरि