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________________ अप्पाड नमोत्थुणं सूत्र ६३ अप्पडिहय-वर-नाण-दसण-धराणं, वियट्ट-छउमाणं ।।७।। ___ जिणाणं जावयाणं, तित्राणं तारयाणं, बुद्धाणं बोहयाणं, मुत्ताणं मोअगाणं ।।८।। सव्वत्रूणं, सव्व-दरिसीणं, सिव-मयल-मरुअ-मणंत-मक्खयमव्वाबाह-मपुणरावित्ति सिद्धिगइनामधेवं ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाणं, जिअ-भयाणं ।।९।। जे अ अईआ सिद्धा, जे अ भविस्संति णागए काले । संपइ अ वट्टमाणा, सव्वे तिविहेण वंदामि ।।१०।। पद - ३३ : संपदा - ९ अक्षर - २९७ अन्वय सहित संस्कृत छाया एवं शब्दार्थ : अरिहंताणं भगवंताणं नमोऽत्थु णं ।।१।। अर्हद्भ्यः भगवद्भ्योर्नमोऽस्तु ।।१।। अरिहन्तों को, भगवंतों को मेरा नमस्कार हो! आइगराणं, तित्थयराणं सयं-संबुद्धाणं ।।२।। आदिकरेभ्यः, तीर्थंकरेभ्यः स्वयं-सम्बुद्धेभ्यः ।।२।। आदि करनेवालों को (अथवा आदि में = पूर्व में जन्मादि करने के स्वभाव वालों को) तीर्थंकरों को, स्वयं सम्यग् बोध पाए हुओं को।।२।। पुरिसुत्तमाणं, पुरिस-सीहाणं, पुरिस-वर-पुंडरीआणं, पुरिस-वर-गन्धहत्थीणं ।।३।। पुरुषोत्तमेभ्यः, पुरुष-सिंहेभ्यः, पुरुष-वरपुण्डरीकेभ्यः, पुरुष-वरगन्धहस्तिभ्यः ।।३।। पुरुषों में जो उत्तम हैं, पुरुषों में जो सिंह समान हैं, पुरुषों में जो श्रेष्ठ पुंडरीक-कमल समान हैं, पुरुषों में जो श्रेष्ठ गंधहस्ती समान हैं, उनको ।।३।।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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