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सूत्र संवेदना - २
है। यद्यपि व्यतीत हुए अनंतकाल में तो सभी भूमियों पर से अनंत आत्माएँ मोक्ष में गई हैं, तो भी तीर्थ भूमि पर केवलज्ञान और मोक्ष प्राप्त करनेवाले अन्य क्षेत्र से कई गुना अधिक होते हैं, इसी कारण ऐसे क्षेत्र संसार तारण की क्रिया में एक प्रबल निमित्त बनते हैं ।
जंगम तीर्थ याने गमन-आगमन करते हुए तीर्थ । भगवद् आज्ञा को हृदय में धारण कर, भगवान की आज्ञा का अनुसरण करनेवाले साधु-साध्वीजी भगवंत जंगम तीर्थ स्वरूप हैं। ऐसे महात्माओं के दर्शन-वंदन-पूजन-परिचयादि से अनंत आत्माएँ सन्मार्ग में जुड़ती हैं । योग्य आत्माओं को उनके दर्शनादि से भी सम्यक्त्व और चारित्र के परिणाम पैदा हो सकते हैं और इन परिणामों द्वारा संसार सागर से तैरा जा सकता है, इसलिए वे भी तीर्थ कहलाते हैं ।
इसके बावजूद इस सूत्र में जंगम तीर्थों को छोड़कर, मुख्य रूप से स्थावर तीर्थों तथा उसमें रहे जिनबिंबों की वंदना की गई है । इस सूत्र का उपयोग खास करके चैत्यवंदन करते वक्त किया जाता हैं । मूल सूत्र:
जं किंचि नाम तित्थं, सग्गे पायालि माणुसे लोए ।
जाइं जिणबिंबाई, ताइं सव्वाइं वंदामि ।।१।। पद ४
संपदा १
अक्षर-३२ अन्वय सहित संस्कृत शाया और शब्दार्थ :
सग्गे पायालि माणुसे लोए जं किंचि नाम तित्थं । स्वर्गे पाताले मानुषे लोके यत्किंचित् नाम तीर्थम् । स्वर्ग में, पाताल में और मनुष्य लोक में जो कोई तीर्थ हैं, जाइं जिणबिंबाइं ताइं सव्वाइं वंदामि ।।१।। यानि जिनबिंबनि तानि सर्वाणि वन्दे ।।१।। (और) जो जिनेश्वर (परमात्मा) की प्रतिमाएँ है, उन सभी को मैं वंदन करता हूँ।