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सूत्र संवेदना - २
भगवंतों का ध्यान किया जाता है । प्रभात में उनको नित्य वंदन किया जाता है, जो भव्यात्माओं के लिए विशिष्ट भाव वृद्धि का कारण बनता है ।
वर्तमान काल में भी महाविदेह क्षेत्र में तीर्थंकर भगवंत, केवली भगवंत और सुसाधु विपुल प्रमाण में हैं, तो भी हमारा पुण्य कमजोर है, इसीलिए हमें वे मिल नहीं सकते । इसलिए हम अनेक शंका का स्पष्ट समाधान प्राप्त करके, सन्मार्ग में विशेष यत्न नहीं कर सकते । इन महापुरुषों को याद करके इस काल में मिले हुए देव-गुरु की ऐसी सेवा-भक्ति करें कि, जिससे नजदीक में ही तीर्थंकर जैसे देव एवं निग्रंथ गुरु भगवंत हमें मिल सकें। यह पद बोलते हुए ऐसा संकल्प विशेष भाव का कारण बन सकता है।
चौबीस तीर्थंकर, केवली भगवंत, मुनिभगवंत वगैरह को वंदन करके भी असंतुष्ट साधक, अपने भावोल्लास की वृद्धि के लिए वर्तमान में जो विशिष्ट तीर्थस्थान हैं, उसमें रहे मूलनायक भगवान को याद करके उनकी स्तुति करता है !
जयउ सामिअ ! जयउ सामिअ ! - हे स्वामी, आप की जय हो ! आप की जय हो !
रिसह सत्तुंजि - शत्रुजय तीर्थ के उपर रहे श्री ऋषभदेव भगवान (की जय हो।)
शत्रुजय तीर्थ शाश्वत तीर्थ है । इस तीर्थ के महात्म्य से अनंत जीवों ने अंतरंग शत्रु पर विजय प्राप्त किया है, इसलिए उसका नाम शत्रुजय है । इस तीर्थ के सान्निध्य से अनंत जीवों ने सिद्धिगति प्राप्त की हैं, उसीसे उसका नाम सिद्धक्षेत्र भी है । तीनों लोक में इसकी बराबरी करनेवाला कोई तीर्थ नहीं है । इसई महातीर्थ के विविध प्रकार के प्रभाव के कारण उसके २१ और १०८ नाम, प्रसिद्ध हुए हैं । वर्तमान में वहाँ श्री ऋषभदेव परमात्मा मूलनायक के रूप में बिराजमान हैं ।