SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुवादक की अंतःकामना स्वबद्ध होना ही परमार्थ को पाने का पहला कदम है और इसके लिए आवश्यक है आवश्यक-क्रिया के सूत्रों का समीचीन ज्ञान और भावार्थ की संवेदना। जब तक ये दोनों पूर्ण रूपेण समझ में नहीं आते, तब तक परिणति की संभावना नगण्य ही रहती है। __ परम श्रद्धेय सा. श्री प्रशमिताश्रीजी ने आवश्यक क्रिया एवं चैत्यवंदन के सूत्रों का इतना मार्मिक विवेचन प्रस्तुत किया है कि पाठक को लगता है कि पढ़ते समय उसे वैसा स्पंदन हो रहा है। यही इस पुस्तक की विशेषता है। पंद्रह सूत्रों के माध्यम से, जिसमें कुछेक श्रेष्ठ सूत्र स्पर्शित हुए हैं जैसे - नमोऽत्थुणं सूत्र, उवसग्गहरं सूत्र, जयवीयराय सूत्र, अरिहंतचेइयाणं सूत्र, पुक्खवरदी, सिद्धाणं बुद्धाणं सूत्रादि के माध्यम से पूज्यश्री ने साधक की साधनापूर्ण मनोस्थिति की अनिवार्यता का विवरण किया है । एक अनुवादक के लिए इससे बड़ी खुशी क्या हो सकती है कि विषय धर्म का हो, भाषांतर करने की आज्ञा गुरु भगवंतों की हो एवं हेतु धर्म प्रभावना का हो । बहुत ही खुशकिस्मत होता है वो श्रावक जिसे ये उत्तरदायित्व मिलता है। इस दायित्व को निभाने में साथ दिया है श्रीमती अजिता मेहता एवं श्री शैलेषजी मेहता ने । उनको हार्दिक धन्यवाद । __ पू. गुरुवर्या श्री प्रशमिताश्रीजी के चरण कमलों में अंतस्तल से वंदन कि उन्होंने ये जिम्मेवारी मुझे सौंपी। उन्हें शत-शत वंदन एवं साथ में पू.सा.श्री जिनप्रज्ञाश्रीजी को भी जिन्होंने कार्य की प्रगति का स्नेहयुक्त सर्वांगी ध्यान रखा। वंदन स्व. गुरुवर्या श्री हेमप्रभाश्रीजी एवं सा. श्री विनीतप्रज्ञाश्रीजी को भी जो इस अपूर्व सान्निध्य का निमित्त बनीं। गुरु भगवंतों का वात्सल्य बना रहे और हम शासन प्रभावना के हेतु बने रहे, यही मंगल कामना । १०, मंडपम रोड़, किलपॉक, - डॉ. ज्ञान जैन चेन्नई - ६०००१०. B.Tech.,M.A.,Ph.D. २०६८ श्रावण सुद-१५
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy