SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र संवेदना - २ १२. अमिलियं (अमिलितम् एक-दूसरे में मिले बिना) सूत्र के अक्षर एक दूसरे के साथ मिल जाए, क्या बोल रहे हैं, वह समझ में ही न आए ऐसा नहीं, परन्तु सूत्र के सभी अक्षर अलग-अलग स्पष्ट रूप से बोलने चाहिए । १३. अवच्चामेलियं (अव्यत्यानेडितम्=बहुत तोड़-मरोड़कर नहीं बोलना चाहिए) दूसरे सूत्रों जैसी दीखती गाथा या पदों की मिलावट किए बिना या, उसी सूत्र की गाथा या पद आगे-पीछे किए बिना, क्रम से बोलना चाहिए । १४. पडिपुण्णं (प्रतिपूर्णम्-संपूर्ण) सूत्र में शब्द, अक्षर, मात्रा वगैरह हों, उतने सब पूर्णतया बोले जाए, और एक ही पद बार बार न बोला जाय। __१५. पडिपुण्णघोसं (प्रतिपूर्णघोषम् उदात्त आदि घोष वाला) स्वाध्याय करते समय उदात्त, अनुदात्त, स्वरित के घोषपूर्वक बोला हुआ। घोषसमं पद में सूत्र पढ़ते समय की बात है । जब कि इस पद में स्वाध्याय करते समय की बात है, यह फ़र्क ध्यान में रखना चाहिए ।। १६. कण्ठो?विप्पमुक्कं (कण्ठौष्ठविप्रमुक्तम् गले या होठ को बराबर खुला करके) क-ख-ग वगैरह कंठ्य वर्ग के अक्षरों का उच्चारण स्थान कंठ है, अर्थात् क-ख-ग वगैरह अक्षर नाक से नहीं, बल्कि गले से बोले जाने चाहिए । उसी तरह तालव्य, मूर्धन्य, दंत्य और औष्ठ्य वर्ग के अक्षर भी अपने-अपने उच्चारण स्थल से ही बोले जाने चाहिए । जैसे बालक और तुतके आदमी की भाषा समझ में नहीं आती वैसे सूत्र के अक्षरों का उच्चारण, गला या होंठ दबाकर या बंद करके, ऐसे बोला जाय कि वह समझ में ही न आए, ऐसे नहीं बोलना चाहिए, गला और होठ खुल्ला रखकर अक्षर स्पष्ट रूप से समझे जा सके, ऐसे बोलने चाहिए । १७. गुरुवायणोद्गयं (गुरुवाचनोपगतम् गुरु के दिए (पाठ) के अनुसार पाठांतर किए बिना) सूत्रपाठ गुरु द्वारा दी हुई वाचना के अनुसार ही होना चाहिए । काल, विनय वगैरह ज्ञानाचार के सेवनपूर्वक, सूत्रपाठ गुरु महाराज के मुख से धारण किया हुआ या लिया हुआ होना चाहिए । कान
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy