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________________ भूमिका और पश्चानुपूर्वी से बार-बार याद किया हुआ, वैसे ही पहले से, अन्त से या बीच से कहीं से भी शुरू करके बोला जा सके, उस प्रकार से तैयार किया हुआ होना चाहिए । उसमें आनुपूर्वी : अर्थात् नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं... ऐसा सीधा क्रम तथा पश्चानुपूर्वी : अर्थात् नमो आयरियाणं, नमो सिद्धाणं, नमो अरिहंताणं... ऐसा उलटा क्रम ६. नामसमं (नामसमम् अपने नाम की तरह याद रखा हुआ) सूत्र को अपने नाम की तरह याद रखा हो तो अचानक ही निंद में से उठकर भी बोलना हो तो बोला जा सके, उस प्रकार याद रखा हुआ होना चाहिए । ७. घोससमं (घोषसमम्=जिन अक्षरों का जैसा घोष हो, वैसे ही घोष से स्पष्ट उच्चारण होना चाहिए) उदात्त, अनुदात्त और स्वरित ऐसे तीन प्रकार के घोष हैं । गुरु के कहने के अनुसार उदात्त, अनुदात्त, स्वरित में से यथोक्त उच्चारणपूर्वक सीखा हुआ होना चाहिए । ८. अहीणक्खरं (अहीनाक्षरम्=कम अक्षर वाला नहीं) पूरे अक्षरों के साथ बोला जाता हो, एक भी अक्षर का उच्चारण कम न होता हो । ९. अणच्चक्खरं (अनत्यक्षरम्=अधिक अक्षरोंवाला नहीं) सूत्रों में हो उतने ही अक्षरों का उच्चारण होता हो, एक भी अक्षर ज्यादा न बोला जाता हो । १०. अव्वाइद्धक्खरं (अव्याविद्धाक्षरम्= टेढ़े-मेढ़े किए बिना) टेढी-मेढ़ी रखी हुई रत्नमाला में अव्यवस्थित रत्नों की तरह सूत्र के अक्षर इधर-उधर किए बिना व्यवस्थित प्रकार से तैयार किया हुआ होना चाहिए । ११. अक्खलियं (अस्खलितम् स्खलना रहित) जहाँ अटकने की ज़रूरत नहीं है, वहाँ जरा भी अटके बिना, बीच में अं... अं... न हो इस प्रकार से बोला जा सके वैसा होना चाहिए ।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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