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________________ चैत्यवंदन की विधि ३३५ ४. उसके बाद नमोऽत्यु णं सूत्र कहें । उपरोक्त सभी सूत्र कैसे भावपूर्वक बोलने चाहिए, वह मध्यम चैत्यवंदन से समझ लें। ५. इसके बाद जयवीयराय सूत्र (आभवमखंडा तक) बोलें। ६. इस प्रकार एक बार चैत्यवंदन पूर्ण हुऔर फिर पुनः खमासमण देकर, चैत्यवंदन का आदेश माँगकर, आदेश स्वीकारकर चैत्यवंदन, जं किंचि; नमोऽत्थु णं० सूत्र बोलें। । इतनी क्रिया किस भाव से किस प्रकार करनी चाहिए, उसकी समझ भी मध्यम चैत्यवंदना में से समझ लें। उत्कृष्ट चैत्यवंदन की यह क्रिया १२ अधिकार में (विभाग में) बाँटी गई है। उसमें नमोऽत्थु णं सूत्र भाव-अरिहंत की स्तवनारूप है। उससे भावजिन की स्तवना का प्रथम अधिकार यहाँ प्राप्त होता है। 'नमोऽत्थु णं' सूत्र की अंतिम गाथा 'जे अ अईआ...' में तीनों काल के द्रव्य अरिहंतों को स्मृति में लाकर वंदना की जाती है, उससे द्रव्यजिन की वंदना का दूसरा अधिकार यहाँ प्राप्त होता है। ७. फिर खड़े होकर अरिहंत चेईयाणं०, कहकर एक नवकार का काउस्सग्ग करके, काउस्सग्ग पारकर (नमो अरिहंताण कहकर) नमोऽर्हत् कहकर प्रथम थुई कहें । 'अरिहंत चेइयाणं' सूत्र अरिहंत भगवंत के चैत्यों के वंदन-पूजन आदि के फल को पाने के लिए किए जानेवाले कायोत्सर्ग की प्रतिज्ञा करने के लिए बोला जाता है। इससे स्थापना जिन की वंदना का तीसरा अधिकार प्राप्त होता है । ८. उसके बाद लोगस्स०, सव्वलोए अरिहंत चेइयाणं, कहकर एक नवकार का काउस्सग्ग करके, काउस्सग्ग पारकर (नमो अरिहंताणं कहकर) दूसरी थुई कहें। मध्यम चैत्यवंदन की तरह इतनी क्रिया करके भावजिन, द्रव्यजिन और स्थापनाजिन को वंदन करने के बाद विशिष्ट चैत्यवंदन करने की भावना से
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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