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सिद्धाणं बुद्धाणं सूत्र
३१९ का वर्णन शास्त्र में पढ़े, तो पता चलता है कि भगवान के कल्याणक प्रसंग कितने जीवों के सुख का कारण बनते हैं ! अन्य जीवों की बात तो जाने दो, जहाँ सदा के लिए गहरा अंधकार है, जहाँ सदाकाल के लिए जीवों को दुःख है, वैसे नरक में भी प्रभु के प्रत्येक कल्याणक में प्रकाश होता है। एक क्षण के लिए वहाँ के जीव भी सुख का अनुभव कर सकते हैं, इसीलिए भगवान की सभी अवस्थाओं को कल्याणक कहा जाता है ।
इस अवसर्पिणी काल में बाईसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ भगवान के महाव्रत का स्वीकार स्वरूप दीक्षाकल्याणक, घातीकर्म का नाश करके केवलज्ञान की प्राप्ति स्वरूप केवलज्ञान कल्याणक और सभी कर्मों का नाश करके निर्वाणगमनस्वरूप मोक्ष कल्याणक ये तीनों कल्याणक उज्जयंतगिरि गिरनार के ऊपर हुए हैं । __ यह पद बोलते हुए नेमिनाथ भगवान का साधना क्षेत्र, केवलज्ञान की भूमि और मोक्षप्राप्ति का स्थान स्मृति में आता है। राजुल से विवाह करने गए नेमिकुमार जीवों की करुणा के कारण वहाँ से वापस आ गए । वर्षीदान देना शुरू किया और रैवतगिरि के ऊपर जाकर संयम जीवन का स्वीकार किया। वहीं कर्मक्षय की साधना का प्रारंभ किया । इसी पर्वत के ऊपर चौवनवें दिन नेमिनाथ भगवान को केवलज्ञान हुआ। देवताओं ने समवसरण की रचना की । उसके बाद अन्य जीवों के हित के लिए उन्होंने पृथ्वीतल के ऊपर विचरण किया। हजार वर्षों के बाद परमात्मा पुनः उज्जयंतगिरि पधारे और शुक्लध्यान के अंतिम दो पैरियों के ऊपर आरुढ़ होकर शैलेशीकरणपूर्वक आयुष्य पूर्ण करके सभी कर्मों का विनाश करके परमात्मा यहाँ से ही मोक्ष में गए।
इस तरह इस स्थान के साथ परमात्मा के तीन कल्याणकों को याद करके, उन-उन स्थितियों की प्राप्ति की भावना के साथ यह पद बोलते हुए परमात्मा की वंदना की जाए, तो अपने संयम, केवलज्ञान और मोक्ष में विघ्न करनेवाले कर्म का विनाश होता है । 7 नारका अपि मोदन्ते यस्य कल्याण पर्वेषु । वीतराग स्तोत्र-१०-७