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________________ ३०५ पुक्खरवरदी सूत्र - ३०५ सुअस्स भगवओ करेमि काउस्सग्गं वंदणवत्तियाए - पूजनीय ऐसे श्रुतधर्म के वंदन-पूजनादि के लिए मैं कायोत्सर्ग करता हूँ। ___ 'भग' शब्द का अर्थ ऐश्वर्य, बल, लक्ष्मी आदि होता है। श्रुतधर्म की सुंदर आराधना करनेवालों को ऐसे विशिष्ट पुण्य का बंध होता है कि जिसके कारण श्रुतज्ञान और विशिष्ट रूप ऐश्वर्यादि की प्राप्ति होती है तथा इस श्रुतज्ञान से केवलज्ञानरूपी लक्ष्मी और गुणसंपत्तिरुप ऐश्वर्य भी प्राप्त होता है, इस प्रकार ‘भग' की प्राप्ति का कारण श्रुतज्ञान होने से कारण में कार्य का उपचार करके यहाँ श्रुतधर्म को भी भगवान ऐसा सार्थक विशेषण दिया है । इसके अलावा 'भगवओ' शब्द का अर्थ 'पूज्य' भी होता है। ऐश्वर्यादि गुणसंपन्न अथवा पूज्य ऐसे श्रुतज्ञान को वंदन के निमित्त से मैं कायोत्सर्ग करता हूँ । यहाँ वंदणवत्तियाए से लेकर पूर्ण अरिहंत चेइयाणं सूत्र तथा अन्नत्थ सूत्र बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग किया जाता है । यह कायोत्सर्ग श्रुत की आराधना के लिए है । इसलिए कायोत्सर्ग पारकर श्रुतज्ञान के माहात्म्य को बतानेवाली थुई बोली जाती है । यह कायोत्सर्ग करने का कारण यह है कि पंचपरमेष्ठी में अरिहंत और सिद्ध भगवंत ज्ञान की पराकाष्ठा को प्राप्त हुए हैं और आचार्यादि भी विशेष प्रकार से ज्ञानादि के लिए प्रयत्न करनेवाले हैं, इसलिए नवकार में उनको नमस्कार करने से उनमें रहे ज्ञानादि गुणों का बहुमान अपने ज्ञानावरणीय कर्म का नाश करवाकर ज्ञानादि गुणों की प्राप्ति का कारण बनता है। सुअस्स भगवओ बोलकर जब कायोत्सर्ग किया जाए, तब इस सूत्र में बताया गया श्रुतज्ञान का माहात्म्य बुद्धि में उपस्थित होना चाहिए और ऐसे श्रुत की आराधना के लिए मैं कायोत्सर्ग करता हूँ; वैसा ध्यान में रखना चाहिए, तो ही इस कायोत्सर्ग का विशिष्ट फल मिल सकता है ।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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