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सूत्र संवेदना - २
धम्मो वड्डउ सासओ 13 विजयओ - ( ईतरवादियों को ) जीतने के द्वारा श्रुतधर्म हमेशा वृद्धि को प्राप्त करें ।
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“महान प्रभावशाली श्रुतधर्म केवलज्ञान की प्राप्ति न हो, तब तक सदा के लिए वृद्धि को प्राप्त करें ! याने मेरा ज्ञान सदाकाल बढ़ता रहे, उसके लिए श्रुत विषयक वाचना, पृच्छना, परावर्तना और अनुप्रेक्षादि करते हुए श्रुत निर्दिष्ट भाव को सूक्ष्मता से देखने की मुझे शक्ति मिलें ! उन-उन भावों का गहनता से अध्ययन करने का सामर्थ्य मिलें । " ऐसी प्रार्थना द्वारा जब जीव को श्रुत ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम होता है, तब उसे मोक्षमार्ग पर किस प्रकार चलना चाहिए, उसके लिए कैसा प्रयत्न करना चाहिए, वह सब अधिक स्पष्ट स्पष्टतर होता है और आगे बढ़ते हुए जीव क्षपकश्रेणी पाकर केवलज्ञान भी प्राप्त कर सकता है ।
सूत्र के अंत में साधक अपनी भावना व्यक्त करते हुए कहता है,
“कुमत का पराभव करके, उनके ऊपर विजय प्राप्त करने के द्वारा मेरे हृदय में सदा श्रुतधर्म की वृद्धि हो ।” अनादिकाल से इस जगत् में अनेक
मत अस्तित्व में है। ये कुमत अन्य सभी स्थानों में तो अपना साम्राज्य स्थापित करते ही हैं, परन्तु अपने चित्त पर भी अनादिकालीन कुवासनाओं के कारण इनका साम्राज्य स्थापित हो जाता है ।
कुमत से प्रभावित होने के कारण ही आत्मा शरीर से भिन्न होने पर भी खुद को भिन्न नहीं मानती । अनादिकालीन कुवासनाओं के कारण नाशवंत शरीरादि भी शाश्वत लगते हैं । कभी बुद्धि से नश्वरता का स्वीकार करें, तो भी प्रवृत्ति तो ऐसी ही करते हैं कि मानों शरीर शाश्वत काल टिकनेवाला हो }
जीवन में जो प्रतिकूलताएँ आती हैं, वे अपने ही कर्मों के कारण आती हैं और अंदर रहे दोषों के कारण प्रतिकूलताएँ दुःखकारक लगती हैं। यह 13 यहाँ सासओ शब्द क्रियाविशेषण है ।