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सूत्र संवेदना - २
(३) सिद्ध अर्थात् प्रख्यात।' कष, छेद और ताप परीक्षा से शुद्ध सुवर्ण जैसे सुवर्ण रूप में प्रसिद्ध होता है, वैसे कषादि तीन परीक्षा से शुद्ध शास्त्र जगत् में प्रख्याति को प्राप्त करता है। अन्य मत के सिद्धांत तीन परीक्षाओं में उत्तीर्ण नहीं होते । इस लिए वे जैनमत की जैसी प्रख्याति को प्राप्त नहीं कर सकते।
जैनमत (जैन सिद्धांत) मोक्ष के सुख को अवश्य देता है। सभी स्थान में व्याप्त है और सभी परीक्षा में उत्तीर्ण होने के कारण प्रसिद्धि को प्राप्त है, इसीलिए वह सिद्ध है, ऐसे सिद्ध जिनमत में मैं प्रयत्न वाला हूँ।
भो ! यह 'भो' शब्द विशिष्ट श्रुतधर के आमंत्रण के लिए है । उसका अर्थ यह है कि, हे परमर्षियों ! आप देखें, मैं सिद्ध जिनमत को दृढ़ पालनेवाला बना हूँ ।
पयओ - मैं श्रुत में प्रयत्नवाला बना हूँ क्योंकि मैं समझता हूँ कि संसार का निस्तार और मोक्ष की प्राप्ति मुझे इस श्रुत से ही होनेवाली है, इसलिए मैं शास्त्र का सतत अध्ययन करता हूँ । उसका भाव समझने के लिए बुद्धि का पूर्ण उपयोग करता हूँ । जो-जो भाव मैं समझता हूँ, उन भावों के अनुसार मेरे मन-वचन-काया को सक्रिय करता हूँ ।
अतिशय ज्ञानी पुरुषों को नज़र के समक्ष रखकर इस प्रकार बोलने से पुनः पुनः याद आता है कि श्रुतधर महापुरुषों के समक्ष मैंने यह संकल्प किया है । इसलिए मुझे श्रुतज्ञान में क्षण मात्र भी प्रमाद नहीं करना चाहिए। इस प्रकार बोलने से गुणवान व्यक्ति को मैं परतंत्र हूँ, उनकी आज्ञा और इच्छानुसार मुझे जीवन जीना है, वैसा भाव भी ज्वलंत रहता है ।
णमो जिणमए , मैं जिनमत को नमस्कार करता हूँ । 7 कष-छेद-ताप परीक्षा की जानकारी 'धम्म-वर-चाउरन्तचक्कवटट्टीणं' पद में पाना
नं. १३२ पर है। 8 जिणमए : यहाँ सप्तमी विभक्ति है, वह चतुर्थी अर्थवाली है । इसलिए जिनमत को नमस्कार
करता हूँ, ऐसा अर्थ बताया गया है ।