________________
२६६
सूत्र संवेदना - २
देवेन्द्र आदि प्रभु के चरण कमल को नमन करते हैं, यह बताकर अब चरणों की सेवा का फल बताते हैं -
संपूरिताभिनत-लोक-समीहितानि कामं नमामि जिनराज पदानि तानि - नमन करनेवाले लोगों के मनोवांछित जिसके द्वारा अच्छी प्रकार से पूर्ण हुए हैं, उन जिनेश्वर परमात्मा के चरणकमलों को मैं अत्यंत विनम्रता से नमस्कार करता हूँ। __ अनिच्छा रूप मोक्ष को पाए हुए परमात्मा की भक्ति ही ऐसी है कि जो दुःख के मूल के समान इच्छाओं का उपशम (शांत) करे, तो भी जो प्राथमिक कक्षा का साधक है, उसे शुरू शुरू में मोक्ष की साधना में कोई विघ्न आए, तो उस विघ्न को दूर करने की और मोक्षमार्ग में उपकारक सामग्री को प्राप्त करने की इच्छा भी होती है ।
ऐसी इच्छा को पूर्ण करने के लिए वह परमात्मा की पूजा करता है, परमात्मा का जाप करता है, परमात्मा की स्तवना करता है या परमात्मा के चरणों का ध्यान करता है । जिससे ऐसे पुण्य का बंध होता है कि उसको आवश्यक सभी सामग्री मिलती हैं, विशेष फायदा तो यह होता है कि, प्राप्त हुई भौतिक सामग्री में उसे आसक्ति नहीं होती और आध्यात्मिक सामग्री आत्मविकास में सहायक बने बिना नहीं रहती । इन सामग्रियों के सहारे साधक वैराग्यादि गुणों की वृद्धि करके, विरति धर्म को प्राप्त करके, क्रमिक विकास करता हुआ वीतराग बनकर विदेह अवस्था (मोक्ष) को प्राप्त कर सकता है । इसलिए यहाँ प्रभु के चरणकमलों को मनोवांछित फल देनेवाला कहा है ।
5. संपूरित-सम्यक्-पूरित अच्छी प्रकार से पूरे हुए, पूर्ण किए । अभिनतलोक-समीहितानि-नमन
करनेवाले जनों के मनोवांछित । अभि-अच्छी तरह से । नत-झुका हुआ, लोक-मनुष्य । जो मनुष्य अच्छी प्रकार से झुके हुए हैं, वे अभिनतलोक। समीहित-अर्थात् सम्-ईहित-अच्छी तरह से इच्छा हुआ; अभिष्ट, अभिलषित या मनोवांछित यह उसके पर्यायवाची शब्द हैं । यह पद भी जिनराज-पदानि का विशेषण है।