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संसारदावानल स्तुति
सूत्र परिचय :
यह सूत्र चार थुई के जोड़े स्वरूप है। इसकी प्रथम गाथा में वीर भगवान की स्तुति की गई है । इसीलिए इस सूत्र का दूसरा नाम 'वीर जिन स्तुति' भी है।
प्राकृत और संस्कृत दोनों भाषाओं में समान शब्द प्रयोग एवं कहीं भी संयुक्त व्यंजन न होना इस कृति की विशेषता है।
इस सूत्र की रचना प्रकांड विद्वान, १४४४ ग्रंथ के रचयिता प.पू. हरिभद्रसूरिश्वरजी महाराज ने की है । इस विषय में ऐसा जानने को मिलता है कि, उनके दो शिष्य हंस और परमहंस बौद्ध साधुओं द्वारा मारे गए थे । दो महाविद्वान शिष्यों के अवसान से प. पू. हरिभद्रसूरीश्वरजी म.सा. को अत्यंत आघात लगा इसलिए उन्होंने बौद्धों के साथ वाद चालू किया। उस वाद में ऐसी शर्त थी कि, जो हारे उसे खौलते तेल की कड़ाहियों में जलाकर मार दिया जाएगा। छः महिने के अंत में पू. हरिभद्रसूरीश्वरजी म. की विजय हुई। शिष्यों के अवसान और बौद्ध साधुओं के व्यवहार से वे अत्यंत आवेश में आ गए। इस बात को जानकर, उनके गुरु ने शिष्य के आवेश को कम करके उसे उपशम भाव में लाने के लिए और उसे हिंसा