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कल्लाण-कंदं सूत्र
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ज़्यादातर कुवादी लोग अपने अज्ञान और अभिमान के कारण किसी भी पदार्थ को मात्र अमुक दृष्टिकोण से देखते हैं। परिणामतः उन्हें वास्तविक बोध नहीं होता और जगत् की व्यवस्था भी उनके मतानुसार संगत नहीं होती । जैसे कि, आत्मा को एकांत नित्य माननेवाले कुवादीपदार्थ के परिवर्तित पर्याय, उनका विनाश वगैरह नहीं बता सकते । इसके अलावा, आत्मा को एकांत से अनित्य माननेवालों की अपेक्षा से कर्म के सिद्धांत, कार्य-कारण की व्यवस्था, परिवर्तित पर्यायों में भी एक ही द्रव्य की अनुवृत्ति वगैरह संगत नहीं होती । इसलिए ही एकांतवादियों के सिद्धांत या उनकी प्ररूपणा तथा वास्तविकता के बीच बहुत भेद (फरक) देखने को मिलता है । इसके बावजूद भी उनको मिथ्या अभिमान होता है कि हम जो कहते हैं, वही सच है, हम ही मोक्षमार्ग या पदार्थ की व्यवस्था बताते हैं।
यह उनका अभिमान तब तक ही टिकता है, कि जब तक अनेकान्त के सिद्धांत में निष्णात जैनाचार्यों के साथ वे वाद में नहीं उतरते, क्योंकि अनेकान्तवाद की दृष्टी से पदार्थ का निरूपण करने से जगत् की सब व्यवस्था सुसंगत होती है तथा अनेक दृष्टिकोणों से पदार्थ को देखने के कारण नाहक के राग-द्वेष भी उत्पन्न नहीं होते, जैसा कि आत्मा को नित्यानित्य मानने से संसार, बंध मोक्ष, परलोक आदि सब घटता है ।
जिनमत की ऐसी अविसंवादी प्ररूपणा के सामने कुवादी ज्यादा चर्चा करने में असमर्थ होने के कारण अंत में निरुत्तर हो जाते हैं इसलिए जिनमत को कुवादीयों के अभिमान को नष्ट करानेवाला कहा है ।
मयं जिणाणं सरणं बुहाणं - पंडितों के शरणभूत जिनेश्वरों के सिद्धांत को (मैं नमस्कार करता हूँ।)
वस्तु तत्त्व को यथार्थ तरीके से जाननेवाले को बुध अर्थात् पंडित कहते हैं। परमात्मा का सिद्धांत अनेकान्त स्वरूप है, वह उत्सर्ग और अपवादमय है और उसमें एक-एक पदार्थ का मूल्यांकन नय सापेक्ष किया गया