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________________ अरिहंत चेइयाणं सूत्र २२३ आराधना के बिना कभी किसी का मोक्ष संभव नहीं है, इसलिए मुमुक्षु आत्मा, “मोक्ष के साधन रूप इस रत्नत्रयी की प्राप्ति कायोत्सर्ग द्वारा करने की इच्छा रखते हैं । जिनको प्राथमिक कक्षा के बोधि आदि गुण प्राप्त हो चुके हों, वैसी आत्माएँ उसके ऊपर की कक्षा की बोधि आदि की प्राप्ति के लिए कायोत्सर्ग द्वारा उसकी इच्छा रखती है क्योंकि शुद्धि के भेद से बोधि के असंख्य प्रकार हैं। अब बोधिलाभ भी किसलिए चाहिए ? वह बताते हुए कहते हैं - निरुवसग्ग-वत्तियाए - मोक्ष के निमित्त से (मैं कायोत्सर्ग करता हूँ।) मोक्षरूप फल की प्राप्ति के लिए मैं कायोत्सर्ग करता हूँ । सामान्य से भी सम्यग्दर्शन को प्राप्त आत्माएँ समझती हैं कि इस संसार का मूल कारण मात्र (मोहाधीन) इच्छाएँ ही हैं । इन इच्छाओं के अधीन हुआ जीव अनेक कर्मो का बंध करता है । कर्म के कारण वे शरीरादि के संबंध में आते हैं । शरीर के कारण जन्म, मरण, रोग, शोक आदि पीडाएँ खड़ी होती हैं, उन पीडाओं का नाश करने के लिए और नई इच्छाएँ होती हैं। इस प्रकार चक्कर चलता ही रहता है । इसीलिए संसार की वास्तविकता को समझता हुआ साधक जहाँ कोई इच्छा नहीं, कोई उपद्रव नहीं, वैसे अनिच्छारूप-निरुपद्रवरूप मोक्ष को प्राप्त करने के लिए ही बोधि चाहता है । यह पद बोलते हुए साधक सोचता है, “मुझे परम आनंद, पम सुख चाहिए, जो मोक्ष की प्राप्ति से मिलनेवाला है, इसलिए हे प्रभु ! इस कायोत्सर्ग के फलरुप मुझे और कुछ नहीं, परन्तु मात्र मोक्ष प्रदान करें और उसके कारणरुप बोधि प्रदान करें ।” कायोत्सर्ग का मुख्य प्रयोजन मोक्ष है । मोक्ष बोधि के बिना नहीं मिलता है। यद्यपि बोधि की प्राप्ति के लिए शास्त्र में अनेक उपाय बताए गये हैं,
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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