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अरिहंत चेहयाणं सूत्र
सूत्र परिचय :
इस सूत्र द्वारा अरिहंत के चैत्य को वंदना करने स्वरूप चैत्यवंदन किया जाता है, इसलिए इसे 'चैत्यस्तव' कहते हैं ।
शास्त्र में शुभ भाव की प्राप्ति और वृद्धि के अनेक उपाय बताए गये हैं। उसमें सर्वश्रेष्ठ उपाय है, अरिहंत परमात्मा की भक्ति । साक्षात् विहरते अरिहंत परमात्मा की भक्ति जैसे उत्तम फल देती है, वैसे ही उनकी मूर्ति, मंदिर या स्तूप आदि की भक्ति भी शुभभावों को प्रगट करके साधक को अंत में मोक्ष तक पहुँचा सकती है । इसलिए इस सूत्र में अरिहंत के चैत्य के वंदन, पूजन, सत्कार आदि और उनके फलरूप बोधि और बोधि के फलरूप मोक्ष को प्राप्त करने के लिए प्रणिधान पूर्वक काउस्सग्ग में रहने का संकल्प किया जाता है ।
अपेक्षा से सोचें तो मन-वचन-काया के एकाग्रतापूर्वक शुभध्यान में लीन होने के प्रयत्न रूप यह कायोत्सर्ग की क्रिया ही चैत्यवंदन है क्योंकि मन-वचन-काया की गुप्तिवाली आत्मा ही वीतराग भाव के अत्यंत नज़दीक जा सकती है, पर इस शुभध्यान का कारण 'नमोऽत्थु णं' आदि सूत्र हैं, इसलिए उसे भी चैत्यवंदन कहते हैं ।