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सूत्र संवेदना - २
लिए प्रयत्न किया हो । अतः समाधि मरण माँगकर साधक समग्र जीवन काल की समाधि भी माँगता है । समाधि जीवन के लिए ज़रूरी दुःख क्षय एवं कर्म-क्षय की प्रार्थना तो पूर्व में कर ली है, अब इन सब प्रार्थनाओं का फल पाना है, इसलिए समाधि मरण की माँग की है क्योंकि जिसका अंत सुधरे उसका सब सुधरता है ।
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आत्मोन्नति में सम्यग्दर्शन गुण एक नींव की तरह है । नींव के बिना इमारत नहीं बन सकती । इसलिए नींव के गुण रूप सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिए परमात्मा से प्रार्थना करते हैं ।
बोहिलाभो अ और बोधिलाभ ।
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“हे नाथ ! आपको किए गए प्रणाम से मुझे सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हों ।” बोधि अर्थात् सम्यग्दर्शन अथवा ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूप रत्नत्रयी एवं लाभ अर्थात् प्राप्ति ।
साधना का मूल सम्यग्दर्शन है । सम्यग्दर्शन प्राप्त होने के बाद ही ज्ञान और क्रिया मोक्ष का कारण बनते हैं । जब तक मिथ्यात्वरूप मल का नाश नहीं होता और जीव को सम्यक्त्व प्राप्त नहीं होता, तब तक कितनी भी अच्छी धर्मक्रिया करें या कितना भी शास्त्रज्ञान प्राप्त करें, तो भी वह ज्ञान और क्रिया मोक्ष का कारण नहीं बन सकती । इसीलिए साधक यह पद बोलते हुए परमात्मा से प्रार्थना करता है
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“हे प्रभु ! जब तक मिथ्यात्वरुपी विष का वमन नहीं होगा और सम्यक्त्व रूप अमृत का सिंचन नहीं होगा तब तक आपके शासन की, आपकी आज्ञा की सच्ची पहचान नहीं होगी शासन की पहचान के बिना उसका यथार्थ पालन नहीं होगा, आज्ञा के पालन के बिना कर्म का नाश नहीं होगा और कर्मनाश के बिना मुक्ति नहीं मिलेगी; इसलिए हे नाथ ! आप मेरे मिथ्यात्व का नाश करवाकर मुझे बोधि की प्राप्ति करवाँए ।”