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________________ सूत्र संवेदना - २ इन हर एक प्रकार के लोकविरुद्ध कार्य को नज़र के समक्ष रखकर किसी भी प्रकार का लोकविरुद्ध कार्य अपने जीवन में न हो जाए, उसके लिए साधक परमात्मा को यह पद बोलते हुए प्रार्थना करता है - १९२ “हे नाथ ! अनादिकालीन कुसंस्कारों के कारण स्वयं तो शक्ति नहीं है कि इस निंदा आदि लोकविरुद्ध कार्यों से बच सकूँ, तो भी हे परमात्मा ! आपके प्रभाव से मुझमें ऐसा सामार्थ्य प्रगट हो कि जिससे मैं लोकविरुद्ध कार्य का त्याग कर सकूँ ।” आसन्न उपकारी माता-पिता या बुजुर्ग वर्ग की भक्ति किए बिना मोक्ष मार्ग में आगे नहीं बढ़ा जा सकता । इसलिए अब 'गुरुजनपूजा' की पाँचवीं माँग प्रभु से की जाती है । गुरुजनपूआ - गुरुजनों की पूजा । “हे वीतराग ! आपके प्रभाव से मुझे गुरुजनों की पूजा प्राप्त हो !" 'गुरुजन 9 से यहाँ माता, पिता और विद्यागुरु, इन तीनों के संबंधी, वृद्धों और धर्मोपदेशक आदि का बोध होता है । मोक्षमार्ग की साधना में जैसे लोकविरुद्ध प्रवृत्ति का त्याग जरूरी है, वैसे नज़दीक के उपकारी माता, पिता, कलाचार्य आदि का विनय, बहुमान और भक्ति भी आवश्यक है क्योंकि, बुजुर्गो की पूजा से विनय गुण का विकास होता है, मान-कषाय का विनाश होता है, स्वार्थवृत्ति टूटती है, कृतज्ञता गुण की वृद्धि होती है और लोकोत्तर धर्म की आराधना की भूमिका भी इस लौकिक धर्म से संपन्न होती है । इस प्रकार बुजुर्ग वर्ग के सम्मान का ध्यान रखकर किया हुआ धर्म गौरव को प्राप्त करता है । लोग भी ऐसी धर्मी आत्मा के धर्म की प्रशंसा करते हैं । १ } 9. गुरुजन - गुरवश्च यद्यपि धर्माचार्य्या एवोच्यन्ते, तथापीह माता-पिताऽऽदयोऽपि गृह्यन्ते । यो.स्वो.वृ.प्र. ३ माता-पिता कलाऽऽचार्यः, एतेषां ज्ञातयस्तथा वृद्धा । धर्मोपदेष्टारो, गुरूवर्गः सतां मतः । • योगबिंदु-श्लो. ११० -
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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