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________________ जयवीयराय सूत्र ( प्रार्थना सूत्र ) १८९ तदुपरांत सामान्यजन जिसे बहुत खराब नहीं मानते, वैसे 'निंदा, हास्य, मज़ाक आदि कार्य भी सज्जनलोक में निषिद्ध माने जाते हैं, इसलिए धर्मात्मा को ऐसे कार्य का भी त्याग करना चाहिए । धर्मात्मा धर्म के साथ जुड़े होते हैं, वे जब लोकविरुद्ध कार्य करते हैं, तब लोगों को लगता है कि इन लोगों का धर्म ही ऐसा होगा, उसमें ऐसा करने की छूट होगी। इसलिए लोकविरुद्ध कार्य करने से मात्र अपनी ही कीमत नहीं घटती, परन्तु अपने निमित्त से उत्तम जिनधर्म की भी कीमत घटती है और धर्म का लाघव करनेवाली प्रवृत्ति से धर्मात्मा को भी अत्यंत क्लिष्ट कर्म का बंध होता है । इसलिए धर्म में प्रवृत्ति करने से पहले लोकविरुद्ध कार्य का त्याग करना अत्यंत जरूरी है । लोकविरुद्ध कार्य '8 १. सर्वजन की निंदा : किसी का भी बुरा बोलना, निंदा है। दो जन मिलकर जिसकी बात कर रहे हैं, उसी समय उस व्यक्ति के आने पर बात बदलनी पड़े, तो समझना चाहिए कि, वह निंदा है । निंदा सबको अप्रिय है। निंदक को ज्ञानियों ने 'पीठ का माँस खाने वाला " कहा है। सामान्य जन में भी कहावत है - 'करशे पारकी तो जशे नारकी'; ऐसे कड़े शब्दों से निंदा को बुरा कहने के बावजूद भी अनादिकाल की आदत के कारण निमित्त मिलने पर, अपना उत्कर्ष बताने के लिए, अन्य को नीचा दिखाने के लिए, सहनशक्ति के अभाव के कारण अथवा एक बुरी आदत के कारण कभीकभी तो धर्मात्मा भी दूसरों की निंदा करने लगते हैं । : 7. लोक विरुद्ध कार्य : सव्वस्स चेव निंदा, विसेसओ तह य गुणसमिद्धाणं । उजुधम्मकरणहसणं, रीढा जणपूयणिज्जाणं ।।८।। बहुजणविरुद्धसंगो, देसाचारलंघणं चेव । उव्वणभोगो अ तहा, दाणाइ वियऽणं अन्नेउ ।। ९ ।। साहुवसणंमि तोसो, सइ सामत्थंमि अपडिआरो य । एमाइआइँ इत्थं लोगविरुद्धाइं णेआई ।। १० ।। - पंचाशक० - २ 8. पिट्ठिमंसं न खाइज़ा. 11४७11- अध्ययन-८ तथा 'पृल्लिमांसं' परोक्षदोषकीर्तनरूपं 'न खादेत' न भाषेत (हारिभद्रीय टीका) श्री दशवैकालिक सूत्र
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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