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________________ १५२ सूत्र संवेदना - २ ऐसे भावपूर्वक मुनि को नमस्कार करने से, मुनि भगवंत के प्रति पूज्यता के परिणाम अत्यंत उल्लसित होते हैं, जिसके द्वारा नमस्कार करनेवाले के संयम में बाधक कर्मों का विनाश होता है और साधुता के लिए सत्त्व खिलता हैं, जिससे मोक्षमार्ग में गमन वेगवान बनता है । जिज्ञासा : अरिहंत की वंदना स्वरूप चैत्यवंदन के अवसर पर साधु भगवंतों को वंदन करना क्या योग्य है ? तृप्ति : साधक को अरिहंत की श्रेष्ठ कोटि की वंदना करने की तीव्र भावना होती है, पर उत्तम सामग्री से या सुंदर शब्दों से परमात्मा की स्तवना करनेवाले साधक का ऐसा सत्त्व नहीं होता कि, वह परमात्मा की आज्ञा का, उनके एक-एक वचन का पूर्ण पालन करने स्वरूप श्रेष्ठ कोटि की प्रतिपत्ति पूजा कर सकें । ऐसी पूजा का सामर्थ्य खुद में प्रगट हो, उसके लिए ही साधक भगवान की स्तवना करते हुए, श्रेष्ठ कोटि की प्रतिपत्ति पूजा करनेवाले मुनि भगवंतों को स्मृति पथ में लाकर उनकी वंदना करते हैं। अतः अच्छा चैत्यवंदन करने का सामर्थ्य उत्पन्न करने के लिए चैत्यवंदन दौरान भी मुनि भगवंतों को वंदन करना उचित है । __ यह सूत्र बोलकर भगवान की आज्ञानुसार प्रवृत्ति करनेवाले सभी साधु भगवंतों की वंदना करके साधक सोचता है, “धन्य हैं इन मुनि भगवंतों को, जो संपूर्णतया भगवान की आज्ञानुसार जीवन जीते हैं । आज्ञा पालनरूप श्रेष्ठ भक्ति तो वे ही करते हैं, मैं तो मात्र द्रव्य से ही भगवान की भक्ति करता हूँ, परन्तु इन मुनि भगवंतों को वंदन करने से मुझमें ऐसी शक्ति प्रकट हो, मेर? भी ऐसा सत्त्व खिलें कि मैं भी ऐसे श्रेष्ठ साधु भगवंतों की तरह परमात्मा के वचन पालनरूप प्रतिपत्ति पूजा करके, कर्मों का क्षय कर संसार सागर को पार कर सकूँ ।”
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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