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________________ १५० सूत्र संवेदना - २ को ही साधु बननें के योग्य भाव हो सकते हैं । कर्मभूमि के सिवाय अन्य स्थान में जन्मे लोगों के लिए ऐसे परिणाम संभव नहीं हैं । इसीलिए कहा गया है - भरत, ऐरवत और महाविदेह क्षेत्र में जो कोई भी साधु भगवंत है। अ- (च) यहाँ "च" शब्द " अपि " (भी) अर्थ में है । उससे यह कहना है कि कर्मभूमि में रहे साधु भगवंतों को तो वंदना है ही, परन्तु देव द्वारा संहरण करके अकर्मभूमि में लाए गए साधु भगवंत या तो नंदीश्वरादि तीर्थ की यात्रा के लिए गए हुए जंघाचरण, विद्याचरण आदि लब्धिसंपन्न मुनि भगवंतों को भी वंदना की गई है । ऐसे प्रयोग द्वारा शास्त्रकार की साधु मात्र को वंदन करने की भावना व्यक्त होती है । सव्वेसिं तेसिं पणओ, तिविहेण तिदंड - विरयाणं - तीन दंड से विराम पाए हुए सबको तीन योग से मैं नमन करता हूँ । आत्मा को जो दंड दे - दुःखी करे, उसे दंड कहते हैं । पाप प्रवृत्ति में प्रवर्तते मन, वचन और काया के योग आत्मा को अशुभ कर्मबंध करवाकर, दुर्गतियों में भटकाकर दु:खी करते हैं, इसलिए उन्हें दंड कहते हैं । से वह द्वीप आधा गिना जाता है । उसके बाहर किसी भी मनुष्य का जन्म या मरण नहीं होता । इस प्रकार जंबूद्वीप की एक तरफ (२+४+८+८) कुल २२ लाख योजन प्रमाण क्षेत्र में मनुष्य की उत्पत्ति होती है और दूसरी तरफ भी २२ लाख योजन प्रमाण क्षेत्र में मनुष्य हो हैं । इस तरह जंबूद्वीप सहित (१+२२+२२) कुल ४५ लाख योजन प्रमाण मनुष्य लोक हैं । इस अढ़ाई द्वीप में १५ कर्मभूमि, ३० अकर्मभूमि और ५६ अंतद्वीप आए हुए हैं, जिसमें ३० अकर्मभूमि और ५६ अंतर्द्वीप में युगलिक मनुष्य उत्पन्न होते हैं, जो साधुता को प्राप्त नहीं कर सकते; मात्र १५ कर्मभूमि में उत्पन्न हुए मनुष्य ही इस साधुता को प्राप्त कर सकते हैं । ये १५ कर्मभूमि निम्नलिखित है - जंबूद्वीप में } धातकीखंड में अर्धपुष्करवर कुल १ भरत १ ऐरवत और + २ भरत २ ऐरवत और + २ भरत २ ऐरवत और ५ भरत ५ ऐरवत १ महाविदेह २ महाविदेह २ महाविदेह ५ महाविदेह = १५ कर्मभूमि
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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