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नत्थु सूत्र
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विशिष्ट प्रकार के तथाभव्यत्व के कारण तीर्थंकर की आत्मा में इतना विशेष है कि, वे इस चारित्र को पाकर विशिष्ट कोटि को परार्थ कर सकते हैं । पशु-पक्षी जैसे हीन योनी वाले प्राणियों को भी वे धर्म दे सकते हैं ।
३. उत्कृष्ट फल का भोक्ता : उत्कृष्ट धर्माराधना के फल स्वरूप तीर्थंकर नाम कर्म के उदय से प्राप्त हुए अष्टप्रातिहार्य आदि समृद्धि, वाणी के ३५ गुण, विशिष्ट कोटि के रूप, यश आदि समृद्धि का उपभोग तीर्थंकर करते हैं । इस सर्वोत्तम ऋद्धि की प्राप्ति देवों के लिए भी असंभव है, इसलिए परमात्मा ही सच्चे अर्थ में धर्म के नायक हैं ।
४. धर्म में विघात का अभाव : परमात्मा ने उत्तम धर्मसाधना करके अवश्य फल देनेवाला सर्वश्रेष्ठ पुण्यबंध, एवं पापकर्मों का सर्वथा नाश किया, जिसके कारण विघ्न करनेवाला कोई तत्त्व ही नहीं रहा । फल स्वरूप उनमें धर्म के विघात का अभाव है । इसलिए वे ही धर्म के नायक हैं । इन १-१ हेतु के अवांतर ४-४ कारण 56 ललित विस्तरा में दिये हैं।
यह पद बोलते समय सर्वश्रेष्ठ संयम के स्वामी अरिहंत परमात्मा को याद करके हृदय के भाव से परमात्मा को प्रणाम करके प्रार्थना करें कि
‘हे नाथ ! आपको किया हुआ यह नमस्कार हमें भी श्रेष्ठ चारित्र का स्वामी बनाएँ ।'
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धर्म के नायक भी अगर धर्मरथ के सारथी न बनें, तो वे चारित्रधर्म में अन्य का प्रवर्तन नहीं करवा सकते, इसलिए अब उसका विवेचन करते हुए कहते हैं
56. मूलहेतु प्रत्येक के ४-४ अवांतर हेतु
१. धर्मवशीकरण - विधि समासादन' - निरतिचार पालन' - यथोचित दान', अपेक्षाऽभाव
२. उत्तमधर्मप्राप्ति - क्षायिक धर्मप्राप्ति - परार्थसंपादन' - हीनेऽपि प्रवृत्ति' - तथाभव्यत्त्व' - सकल सौन्दर्य' - प्रातिहार्ययोग' - उदारर्द्धयनुभव' - तदाधिपत्यं
३.
धर्मफलयोग -
४. धर्मघाताभाव - अवन्ध्य पुण्यबीजत्व'- अधिकानुपपति'- पापक्षयभाव' - अहेतुकविधाता सिद्ध