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________________ १२७ नमोत्थुणं सूत्र यह पद बोलते हुए धर्मदेशना देकर जगत के ऊपर महान उपकार करनेवाले परमात्मा को स्मृतिपट पर लाकर, उनके प्रति अत्यंत कृतज्ञभाव से चित्त को वासित करके नमस्कार करते हुए प्रार्थना करें - “हे नाथ ! बहुमानपूर्वक किया हुआ यह नमस्कार हममें जीवनभर आपके वचनानुसार जीने का सामर्थ्य दें।" देशना द्वारा भगवान ही चारित्रधर्म के प्रदाती हैं, ऐसा कहने का क्या कारण है यह बताते हैं - धम्मनायगाणं (नमोऽत्थु णं) - चारित्रधर्म के नायक परमात्मा को (मेरा नमस्कार हो) । परमात्मा श्रेष्ठ कोटि के चारित्रधर्म के नायक हैं, इसीलिए वे देशना द्वारा अन्य को चारित्रधर्म देनेवाले कहलाते हैं । किसी भी वस्तु के दान में वही व्यक्ति समर्थ बनता है, जो उस वस्तु का स्वामी-नायक हो । इस जगत् में धर्म करनेवाली आत्माएँ तो बहुत हैं, परन्तु चारित्रधर्म के स्वामी या नायक कहा जा सके ऐसे तो मात्र अरिहंत भगवान ही हैं, क्योंकि नायक बनने के योग्य जो गुण होने चाहिएं वे गुण तो अरिहंतों में ही होते हैं । इसीलिए चारित्रधर्म के नायक परमात्मा ही चारित्रधर्म के प्रदाता हैं; ऐसा कहना यथार्थ है । नायक के मुख्य चार गुण होते हैं, वे इस प्रकार हैं १. वशीकरण : जिसका जो मालिक हो, उसको वह वस्तु संपूर्ण तया वश होनी चाहिए। २. उत्तम की प्राप्ति : वस्तु के मालिक को मिली हुई वस्तु भी सामान्य नहीं होनी चाहिए, परंतु श्रेष्ठ कोटि की होनी चाहिए । ३. फल का भोक्ता : वस्तु का मालिक प्राप्त वस्तु के फ़ल का भोक्ता भी होना चाहिए ।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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