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________________ अनेक विध शास्त्रों का आधार होने पर भी गणधर उचित इन सूत्रों का सुयोग्य अर्थ करने का कार्य सरल नहीं। अर्थ-निर्णय करने में अनेक बार खूब मनोमंथन करने के बाद भी अर्थ की स्पष्टता नहीं होती थी। पंडितवर्य सुश्रावक श्री प्रवीणभाई, श्री मयंकभाई आदि ने मुझे अपना कीमती समय देकर विषम प्रश्नों के सुन्दर समाधान के साथ अनेक स्थलों पर तत्त्व का बोध कराकर नईनई दिशाएँ भी बताई हैं। इस समय मैं उनके उपकार को नहीं भूल सकती। लेख तैयार होने के बाद भी उसमें रही हुई कमियों में सुधार करना भी अनिवार्य था। सन्मार्गदायक पूज्यपाद आचार्यदेवेश श्रीमद् विजय कीर्तियशसूरीश्वरजी महाराज तथा परार्थरसिक पूज्यपाद आचार्यदेव श्री भव्यदर्शनसूरीश्वरजी महाराजने अनेक प्रकार के संघ के कार्य के बीच भी इस लेख को देखकर अनेक स्थानों पर मार्गदर्शन, शुद्धि-वृद्धि करके लेख को क्षतिरहित करने के लिए बहुत श्रम लिया है। अपने बहुत से बड़े कार्यों के बीच भी मेरे इस ग्रंथ शोधन के छोटे कार्य को स्वीकारा, इसके बदले में उनका उपकार तो कभी भी नहीं भूला सकती। अस्वस्थ होने पर भी तपागच्छाधिराज पूज्यपादश्री की साम्राज्यवर्ती पू.सा. श्री रोहिताश्रीजी म.सा. की शिष्यरत्ना विदुषी पू.सा.श्री चन्दनबालाश्रीजी म.सा. ने साद्यंत प्रूफ रिडींग का कार्य किया तथा जरूरी सुधार किए हैं। उसके बदले में मैं उनका आभार मानती हूँ। इन ग्रंथों के वांचन-चिंतन-मनन में सर्वाधिक महत्त्व की प्रेरणा एवं शक्ति मुझे मेरे पूज्य गुरुदेव विदुषीरत्ना पू.सा.श्री चन्द्राननाश्री म.सा. की तरफ से मिली है। उन्होंने मात्र प्रेरणा की है इतना ही नहीं परन्तु उसके लिए समय अनुकूलता एवं सतत सहायता देकर मुझे उत्साहित रखने का कार्य भी किया है। उनका उपकार तो मैं कभी भी नहीं भूल सकती। सच कहूँ तो यह कार्य मेरा नहीं है। समग्र समुदाय की सहायता से यह कार्य हुआ है। इस कार्य के पीछे छोटी-छोटी साध्वीजी भगवंतों ने भी अनेक प्रकार से योगदान दिया है ।
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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