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सूत्र संवेदना
इन पाँच परमेष्ठी भगवंतों को किया हुआ नमस्कार सब पापों का नाश करनेवाला है और सभी मंगलों में प्रधान मंगल है ।
विशेषार्थ : नमो अरिहंताणं' : अरिहंत भगवंतों को नमस्कार हो ।
राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया एवं लोभ : इन छः आन्तरिक शत्रुओं का नाश करके जो वीतरागी हुए हैं, केवलज्ञान रूपी सूर्य द्वारा जो जगत् के सभी पदार्थों को प्रकाशित कर रहे हैं, चौंतीस अतिशयों एवं अष्ट महाप्रतिहार्यों से जो दिशाचक्र (चारों दिशा) को अलंकृत कर रहे हैं, जो अनंत गुण समूह से युक्त हैं तथा जो भव्य जीवों को संसार सागर से पार उतारने के लिए धर्मतीर्थ की स्थापना करके इस अवनीतल पर विचर रहे हैं, वे परम ज्योतिस्वरूप प्रथम परमेष्ठी अरिहंत परमात्मा हैं; ऐसे अरिहंत परमात्मा को इस पद द्वारा नमस्कार किया गया है ।
'नमो' :
नमो अर्थात् नमस्कार; मन-वचन-काया से नमन करने की क्रिया नमस्कार है । गुणवान व्यक्ति के गुणों के प्रति मन में आदर या बहुमान का भाव धारण कर 'नमो जिणाणं' 'मत्थएण वंदामि'... जैसे शब्दों को बोलकर दो हाथ जोड़कर मस्तक झुकाने की क्रिया नमस्कार है । नमस्कार नम्रता का सूचक है । गुणवान के प्रति भक्ति की निशानी है । कृतज्ञता का संकेत है । गुणवान के प्रति आदर-बहुमान का भाव प्रदर्शित करने का साधन है । 'इस संसार में मैं कुछ भी नहीं हूँ एवं अरिहंतादि अनंत गुणों के भंडार हैं' ऐसी वास्तविक समझ एवं अनुभूति ही नमस्कार है । ऐसे नमस्कार द्वारा अहंकार का नाश होता है एवं अल्भाव के प्रति आदर बढ़ता है । अरिहंतादि गुणसंपन्न आत्माओं के प्रति प्रगट हुआ आदर धर्मबीज का 4. यह प्रथमपद प्रथम अध्ययन रूप है, उसमें 'नमो', 'अरि' एवं 'हंताणं' ऐसे तीन पद है । 5. अन्य अपेक्षा को मद्देनज़र रखते हुए आवश्यक नियुक्ति में इन्द्रिय, कषाय, विषयभोग की इच्छाएँ,
परिषह, उपसर्ग एवं वेदनाओं को छ: आंतरशत्रुओ कहा है ।