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१८१
१५७
* मूल सूत्र
१८८
१९३
क्रम विषय पृष्ठ नं. क्रम विषय : पृष्ठ नं. * अन्वय छाया और संस्कृत * अभग्गो.... काउस्सग्गो' शब्दार्थ
१५५ का विशेषार्थ - १७९ * 'तस्स' का विशेषार्थ १५६ * 'जाव...वोसिरामि * 'उत्तरीकरणेणं' का
का विशेषार्थ विशेषार्थ
१५६ ९. लोगस्स सूत्र १८४-२१७ * 'पायच्छितकरणेण' ____ * सूत्र परिचय
१८४ का विशेषार्थ
१८७ * 'विसोहिकरणेणं' का
* अन्वय छाया और विशेषार्थ
१५८ शब्दार्थ * विशुद्धि के प्रकार १५९ * 'लोगस्स उज्जोअगरे' * 'विसल्लीकरणेणं'
का विशेषार्थ का विशेषार्थ १६० * 'धम्मतित्थयरे' का * भाव शल्य के तीन प्रकार १६१
विशेषार्थ
१९२ * शल्य की खोज एवं दूर
* 'जिणे' का विशेषार्थ करने का उपाय १६३
* 'अरिहंते कित्तइस्सं' * कायोत्सर्ग का प्रयोजन १६५
का विशेषार्थ * 'पावाणं...निग्घायणठाए'
* 'चउवीसंपि केवली' का विशेषार्थ १६६
का विशेषार्थ * कायोत्सर्ग की प्रतिज्ञा १६६
* प्रत्येक विशेषण * 'ठामि काउस्सग्गं' का
की आवश्यकता विशेषार्थ
१६६
* 'उसभ...वद्धमाणं' का अन्नत्थ सूत्र १६९-१८३
विशेषार्थ * सूत्र परिचय
१६९
* चौबीस भगवान के नाम * मूल सूत्र
१७२
के सामान्य और विशेष * अन्वय छाया और
अर्थ शब्दार्थ
१७३
* 'विहुय-रय-मला' का * 'अन्नत्थ...दिद्विसंचालेहिं'
विशेषार्थ का विशेषार्थ १७४
* 'पहीण-जर-मरणा' का * 'एवमाइअहिं...' का
विशेषार्थ
२०६ विशेषार्थ
१९४
१९४
१९८
२०५
१७७