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मुहपत्ती पडिलेहन की विधि
सामायिक धर्म समताभाव की साधना के लिए है । समता की साधना विषम वृत्ति एवं प्रवृत्ति के विनाश से होती है । मुहपत्ती एवं शरीर का पडिलेहन करते हुए बोले जानेवाले बोल द्वारा बाह्य एवं अंतरंग समता के तथा विषमता के कारण कौन से हैं, उनमें से किन कारणों को (साधन-उपाय) ग्रहण करने हैं एवं किन कारणों को त्याग करते हैं, उसकी विचारणा करनी है।
पडिलेहन शब्द का संस्कृत संस्कार प्रतिलेखना है । प्रतिलेखना अर्थात् ध्यानपूर्वक देखना अथवा आगमों में बताई विधिपूर्वक अत्यंत बारीकी से बार बार निरीक्षण करना । प्रतिलेखना दो प्रकार से करने में आती है । एक द्रव्य से और दूसरी भाव से। उसमें द्रव्य-प्रतिलेखना मार्ग, वसति, वस्त्र, पात्र एवं उपकरण संबंधी करनी है, जब कि भाव-प्रतिलेखना आत्मा की करनी होती है । मुहपत्ती की द्रव्य प्रतिलेखना से मुहपत्ति या शरीर पर कोई जीव-जन्तु है या नहीं वह देखना है एवं अगर हो तो उस जीव को किसी भी प्रकार की पीड़ा न हो, इस उद्देश्य से जयणापूर्वक उसे योग्य स्थान पर छोड़ना है । भाव प्रतिलेखना द्वारा अपनी तथा अन्य की आत्मा को जिससे पीड़ा होती है, वैसे दोषों को दूर करने के लिए एवं आत्मा को जिससे आनंद हो वैसे गुणों को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करना है ।