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________________ सामायिक लेने की विधि २६९ ५. सामायिक व्रत को स्वीकार करने के बाद सामायिक काल में क्या करना है। सामायिक ग्रहण करने के बाद मुख्य रूप से 'श्रावक को दो घड़ी तक स्वाध्याय ही करना है । स्वाध्याय अर्थात् जिस क्रिया से आत्मा का निरीक्षण, आत्मा का अभ्यास, आत्मा का ध्यान हो वैसी क्रिया । यह स्वाध्याय पाँच प्रकार का होता है : वाचना-पृच्छना-परावर्तना-अनुप्रेक्षा एवं धर्मकथा । स्वाध्याय आदि इस तरीके से करने चाहिए कि अनादिकाल से चली आ रही अपनी विपरीत प्रवृत्ति का अंत हो एवं अपनी आत्मा धीरे धीरे समताभाव के अभिमुख बने। शास्त्र के एक एक शब्द का सहारा लेकर इस तरीके से शब्दों को बोलना चाहिए, जिससे वे शब्द मोहराजा के शस्त्रों को नष्ट करने में समर्थ बन सकें । मोह के संस्कारों को कमजोर करने का काम कर सकें । सामायिक में स्वाध्याय के सिवाय साधु की वैयावच्च, कायोत्सर्ग, मंत्रजाप, ध्यान, खमासमण वगैरह क्रिया भी कर सकते हैं । ६. सामायिक करके हमें क्या पाना हैं ? समता के अभाव में सिद्धि की प्राप्ति नहीं, इसलिए सामायिक अनुष्ठान को बार बार करके हमें समता को आत्मसात् करना चाहिए । ७. सामायिक पारने की विधि : सामायिक व्रत को स्वीकार करके श्रावक सतत स्वाध्याय-ध्यान में मग्न रहता है । जिससे उसे अत्यंत आत्मिक आनंद की प्राप्ति होती है । इस कारण से ही उसकी इच्छा सदा के लिए सामायिक करने की होती हैं । ऐसी भावना होते हुए भी अपनी शक्ति एवं संयोगों का विचार करते हुए जब ऐसा लगे कि, ‘अब एक सामायिक का समय पूर्ण हुआ है । मेरे संयोग आदि का विचार करते हुए अब पुनः सामायिक का प्रारंभ करना योग्य नहीं है।' तब ऐसी उत्तम क्रिया छोड़ने की लेश मात्र भी इच्छा न होते हुए भी केवल काया से ही वह सामायिक पारने की क्रिया करता है । उसका मन तो तब भी सामायिक में ही प्रवृत्त रहता है ।
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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