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________________ सामायिक लेने की विधि एक खमासमण देकर पूछें, सज्झाय संदिसाहुं ?' 'इच्छं" कहकर, फिर से एक खमासमण देकर पूछें, “इच्छाकारेण संदिसह / भगवन् ! सज्झाय करुं ?” " इच्छं' कहकर दोनों हाथ जोड़कर तीन नवकार गिनना । २६७ सामायिक व्रत को स्वीकार करने के बाद अप्रमत्त अवस्था में रह सकें ऐसे किसी आसन में बैठने के लिए गुरु की आज्ञा ली जाती है । इसके लिए एक खमासमण देकर पूछते हैं, "इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! बेसणे संदिसाहुं ?” अर्थात् हे भगवंत ! आप की आज्ञा हो तो मैं बैठने की अनुमति माँगु ? यहाँ जो बैठने की आज्ञा मांगी है, वह पलस्थी मारकर सुखासने में बैठने के लिए नहीं । परन्तु अप्रमत्त भाव का कारण बने, वैसे आसन में बैठने की आज्ञा माँगते है । बाद में जिस स्वाध्याय का आदेश माँगकर स्वाध्याय करना है, उस स्वाध्याय के लिए भाव की वृद्धि करें, वैसी दृढ़ मुद्रा में बैठने के लिए यहाँ आज्ञा माँगी जाती है । गुरु आज्ञा देते हुए कहते हैं, “संदिसह " अर्थात् 'तुम आज्ञा माँग सकते हो' जिसे सुनकर शिष्य 'इच्छं' कहकर उसे स्वीकार करता है । उसके बाद फिर खमासमण देकर पूछना है, 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन्! बेसणे ठांउं ?' अर्थात्, 'भगवंत ! आपकी आज्ञा हो तो मैं आसन (मुद्रा) में स्थिर हो जाऊँ ?' गुरु जब 'ठाएह' कहकर 'तुम स्थिर हो सकते हो,' ऐसा कहते हैं, तब शिष्य 'इच्छं' कहकर उसका स्वीकार करता है । सामायिक में मुख्य कार्य करना है, स्वाध्याय । इसलिए अब खमासमणपूर्वक उसका आदेश माँगते हुए शिष्य पूछता है, "इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सज्झाय संदिसाहुं ?" अर्थात् 'भगवंत ! अब मैं स्वाध्याय में रहने के लिए आज्ञा माँगू ?' 'संदिसह' अर्थात् 'स्वाध्याय के लिए तू आज्ञा माँग सकता है, ' ऐसा कहे तब शिष्य पुनः 'इच्छं' कहकर उसे स्वीकार कर लेता है । इसके बाद फिर खमासमणपूर्वक पूछता है “ इच्छाकारेण संदिसह I
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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