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सूत्र संवेदना
मन को स्थिर करने के लिए प्रथम काया को स्थिर आसन में रखनी चाहिए। स्थिर आसन में रहकर स्वाध्यायादि में इस तरीके से यत्न करना चाहिए कि जिससे मन में किसी चीज के प्रति प्रतिबंध न रहे । सामायिक में यदि कभी किसी कारण से कहीं जाना पड़े, तो समिति-गुप्ति के परिणामपूर्वक गमन-आगमन करना चाहिए । ऐसा करने से यह दोष धीरे-धीरे मंद मंदतर होता हुआ नाश हो जाता है । ___३. चलदृष्टि : सामायिक लेकर दृष्टि यहाँ वहाँ घुमाना 'चलदृष्टि' दोष है। अनादि अभ्यस्त उत्सुकता नामक दोष के कारण जब किसी की आवाज़ सुनने पर या आगमन की शंका होने पर वह कौन है, कहाँ से आया है ? जानने की इच्छा से आँख इधर उधर घुमती है, तब समताभाव को प्राप्त करनेवाले स्वाध्यायादि क्रिया में विघ्न पैदा होता है । इस विघ्न को टालने के लिए दृढ़ यत्नपूर्वक उत्सुकता का त्याग कर नेत्रों को स्थिर करके सामायिकादि की क्रिया में यत्न करना चाहिए ।
४. सावद्य क्रिया : सामायिक में रहते हुए ईशारों आदि से सावधक्रिया विषयक सूचना देना अथवा समिति-गुप्ति के पालन के बिना अयतना से शरीरादि का हलन-चलन करना ‘सावध क्रिया' नामक दोष है । उपयोग बिना की गई पडिलेहन की क्रिया करनेवाले को भी शास्त्र में छः काय का विराधक कहा गया है एवं जीव रक्षा के उपयोग के बिना चलनेवाले को जीव न मरते हुए भी सावध क्रिया करनेवाला कहा गया है । इस दोष से बचने के लिए जिससे सावद्य क्रिया का प्रारंभ हो सके वैसी क्रिया या वैसे किसी इशारे आदि भी नहीं करने चाहिए । पूंजे-प्रमार्जे बिना हाथ-पैर भी नहीं हिलाने चाहिए । पडिलेहनादि समस्त क्रिया उपयोगपूर्वक करनी चाहिए।
५. आलंबन : सुख-सुविधा चाहनेवाले स्वभाव के कारण शरीर की अनुकूलता के लिए खंभे, भीत या अन्य किसी वस्तु का आधार लेकर बैठने-उठने में आलंबन नाम का दोष लगता है । परन्तु किसी रोगादि के