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________________ २५४ सूत्र संवेदना ३. कुवचन : प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्षरूप से किसी की उपस्थिति या अनुपस्थिति में बोले हुए वचन अगर अन्य को पीड़ा पहुंचाएँ तो वे कुवचन कहलाते हैं । ४. संक्षेप : भव्यात्माओं को तत्त्वमार्ग समझाने के प्रसंग पर या हित के अनुकूल कुछ भी कहने के अवसर पर, वे बातें सक्षिप्त में ही समझाई जाएँ तो सुननेवाला जीव अगर योग्य हो, तो भी उस वस्तु को अच्छी तरह नहीं समझ सकता । वचन का ऐसा प्रयोग संक्षेप नामक दोष है । सामायिक में इसको दोष माना जाता है; क्योंकि सामायिक उचित प्रवृत्ति प्रधान अनुष्ठान है एवं उपदेशादि के अवसर पर सामनेवाला व्यक्ति अच्छी तरह समझ सके, इतना विस्तारपूर्वक उपदेश देना ही उचित है, उसके बदले अपनी अधीरता के कारण या अन्यमनस्कता के कारण सामान्य और थोड़ी ही समझ देना अनुचित प्रवृत्ति है एवं समभाव की बाधक है, इसलिए वह प्रस्तुत में दोषरूप है । ५. कलह : सामायिक में किसी के साथ वैमनस्य पैदा हो, इस तरीके से बोलना कलह नामक दोष है । ६. विकथा : राजकथा-देशकथा-भक्तकथा एवं स्त्रीकथा ये चार प्रकार की विकथाएँ हैं । सामायिक में धर्मकथा को छोड़कर धर्मशास्त्र में आई हुई इन कथाओं का रसपोषण हो, उससे मन में विकृती उत्पन्न हो ऐसी बातें करना ‘विकथा' है । ऐसी विकथाएँ सामायिक के भावों को मलिन करती हैं । इसलिए मुमुक्षु को ऐसी कथाओं का सामायिक में त्याग करना चाहिए । ७. हास्य : खुद को या दूसरों को हास्य उत्पन्न हो, वैसे वचनों का प्रयोग करना हास्य नामक दोष है । सामायिक में तात्त्विक भावों की प्राप्ति हो, वैसा ही प्रयत्न करना है। उसके बदले हँसी आए, ऐसा बोलना सामायिक में दूषण है । इसलिए तत्त्वज्ञ पुरुष को ऐसे वचनों का त्याग करना चाहिए ।
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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