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. सामाइयवय जुत्तो सूत्र
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१०. फल संशय : सामायिक का फल मुझे मिलेगा या नहीं ? ऐसी शंका ‘फल संशय' नामक दोष है । सामान्य से विचारका व्यक्ति कोई भी कार्य करते हुए इस कार्य से मुझे क्या फल मिलेगा ? एवं किस तरीके से करने से मुझे फल प्राप्त होगा ? उसका विचार करके ही प्रवृत्ति करता है । इसीलिए कार्य के अनुरूप प्रयत्न करते समय उसे फल में संशय नहीं रहता । आत्मा की निर्मलता एवं सामायिक के बीच कार्य-कारण भाव के विचार के बिना प्रवृत्ति करनेवाले को यह दोष लगने की संभावना रहती है । इसीलिए इस दोष से बचने की इच्छावाले साधक को सामायिक का फल क्या है एवं वह किस तरीके से सामायिक करने से मुझे प्राप्त होगा, उसका निर्णय कर वैसे यत्नपूर्वक सामायिक करना चाहिए एवं विश्वास रखना चाहिए कि, सर्वज्ञ कथित सामायिक में किया हुआ प्रयत्न निश्चय मोक्ष फल देगा ही । ऐसा सोचने से इस दोष की संभावना ही नहीं रहती । वचन के दश दोष :
१. स्वच्छंद वचन : शास्त्र में कहा गया है कि श्रावक को सामायिक में ऐसे ही वचन बोलने चाहिए, जिससे सामायिक के भावों का पोषण हो । इस बात को ध्यान में रखे बिना सामायिक में जैसे-तैसे बोलना ‘स्वच्छंद' दोष कहलाता है। इस दोष से बचने के लिए समता के इच्छुक साधक को सामायिक में समभाव के पोषक शास्त्र स्वाध्याय-तत्त्वपृच्छा आदि ही कार्य करने चाहिए, जिससे इस दोष की संभावना ही न रहे ।
२. सहसाकार : सोचे बिना ही एकाएक सामायिक के भाव के बाधक शब्द का प्रयोग करना ‘सहसाकार' नामक दोष है । कल्याणार्थी साधक सामायिक प्रारंभ करने से पहले संकल्प करता है कि मुझे अपने मन-वचनकाया के योगों को निरवद्य भाव के अनुरूप ही सक्रिय करना है, फिर भी अनादिकालीन गलत आदत के कारण कोई परिचित व्यक्ति आने पर या वैसे संयोग आने पर सहसा ही समभाव के बाधक शब्द निकल पड़ते हैं । इस दोष से बचने के लिए वचनों पर अत्यंत नियंत्रण रखना जरूरी है ।