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सूत्र संवेदना
विशेषार्थ :
करेमि भंते सामाइयं : हे भगवंत, मैं सामायिक करता हूँ ।
करेमि = करता हूँ । पहले दो खमासमण देकर गुरु महाराज से सामायिक की आज्ञा माँगकर साधक कहता है कि, 'हे भगवंत, मैं सामायिक करता हूँ ।
इससे यह निर्णीत होता है कि सर्व आवश्यकों में जो प्रथम सामायिक आवश्यक है वह भी यदि गुरु को आमंत्रण देकर गुरु के अधीन रहकर उनकी अनुज्ञा से ही करना है, तो दूसरे सर्व शुभानुष्ठान भी गुरुकुलवास में रहकर गुरु आज्ञा के अनुसार ही करने चाहिए, क्योंकि तभी विनयगुण से संपन्न हो सकते हैं । शास्त्र में कहा गया है, “आयरस्स मूलं विणओ" सर्व आचार का मूल विनय है । विनयवान ही तप-संयम को प्राप्त कर सकता है । विनयविहीन कोई भी व्यक्ति धर्म को प्राप्त नहीं कर सकता ।
भंते शब्द के भिन्न भिन्न अर्थ :
भंते = हे पूज्य !
'भंते' शब्द भिन्न-भिन्न अर्थ में प्रयुक्त है । उसके द्वारा देव - गुरु एवं आत्मा इन तीनों का स्मरण हो सकता है । उसमें सबसे पहले गुरु की उपस्थिति करने के लिए भंते की छाया 'भदंत' करनी है ।
१. भदंत 1 हे कल्याणकारी एवं सुखकारी । निश्चित कल्याण एवं सुख को जिन्होंने पाया है एवं उपदेश आदि द्वारा जिन्होंने अन्यों को कल्याण एवं सुख का मार्ग बताया हैं, वे भदंत हैं । ऐसे गुरु भगवंत को ध्यान में लाकर, कल्याण एवं सुख का अर्थी साधक उनको आमंत्रण देकर कहता है, 'हे भदन्त ! मैं सामायिक करता हूँ ।
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गुरु भगवंत ने अपनी इन्द्रियों को बस में कर लिया है और इस तरह वे अपनी आत्मा का कल्याण कर रहे हैं, इसीलिए वे सच्चे अर्थ में सुखी हैं । 1. 'भदंत' शब्द भद् + अण धातु से बना है । भद् = कल्याण-सुख, अणति = स्वयं सुख प्राप्त करे एवं दूसरों को दिलाएँ ।