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________________ अन्नत्थ सूत्र इस गाथा का उच्चारण करते वक्त साधक सोचता है कि, “हे भगवंत ! जब तक ‘नमो अरिहंताण' बोलकर मैं अनंत अरिहंत भगवंतों के स्वरूप को उपस्थित कर भाव से उनको नमस्कार न करूँ, तब तक मैं कायोत्सर्ग में रहने की प्रतिज्ञा करता हूँ । उस दरम्यान काया की जड़ता का त्याग करने के लिए उसे जिनमुद्रा, पद्मासन, पर्यंकासन आदि किसी मुद्रा में स्थिर करूँगा । इसके अलावा काया से कोई भी हलन चलन न हो इसका मैं ख्याल रखूँगा । वाणी को मौन धारण करके स्थिर करूँगा । मन को परमात्मा के ध्यान में शुभचिंतन आदि में स्थिर करूँगा । इस तरह मन-वचन-काया को स्थिर करके अन्य सभी प्रवृत्तियों का हे भगवंत ! आपकी साक्षी में विशेष प्रकार से त्याग करता हूँ ।” १८३ जिज्ञासा : 'ठामि काउस्सग्गं' कहकर 'तस्स उत्तरी' सूत्र में ही बताया था कि, 'मैं कायोत्सर्ग में रहता हूँ' परन्तु वहाँ कायोत्सर्ग न करते हुए यह सूत्र बोलकर ही कायोत्सर्ग क्यों किया जाता है ? तृप्ति : 'तस्स उत्तरी' सूत्र बोलकर तुरंत कायोत्सर्ग करना था, परन्तु जरूरी छूट लिए बिना कायोत्सर्ग करना संभव नहीं था । इसलिए आगारों को दर्शाने के लिए अन्नत्थ सूत्र बोला जाता है । जिज्ञासा : वास्तव में कायोत्सर्ग करने का अधिकारी कौन है ? तृप्ति : कायोत्सर्ग गुप्ति के परिणाम स्वरूप है । गुप्ति का परिणाम विरती से आता है। इसलिए वास्तव में कायोत्सर्ग का अधिकारी पाँचवें छट्टे गुणस्थानक पर स्थित साधक ही है । उसके सिवाय अधोवर्ती आत्मा के लिए तो यह क्रिया कायोत्सर्ग के अभ्यासरूप ही होती है ।
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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