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________________ तस्स उत्तरी सूत्र सूत्र परिचय : ___ इरियावहिया सूत्र से ‘पाप का मिच्छा मि दुक्कडं' देकर जो शुद्धि होती है, उस शुद्धि से अधिक विशेष शुद्धि करने के लिए इस सूत्र द्वारा कायोत्सर्ग किया जाता है । एक बार पाप से शुद्ध की हुई आत्मा को और भी शुद्ध करने की प्रक्रिया को उत्तरीकरण कहते हैं । वह इस सूत्र से होता है । इसलिए इस सूत्र का नाम 'तस्स उत्तरी सूत्र' है। आत्मा को अत्यन्त शुद्ध करने की तीव्र लालसा हो एवं आत्मशुद्धि द्वारा मोक्ष ही प्राप्त करने की आतुरता हो, वैसा साधक यह सूत्र बोलने का अधिकारी है । आत्मा की विशेष शुद्धि मात्र जीवहिंसा संबंधी पापों की ही नहीं करनी है, परन्तु अपनी आत्मा में रहे हुए अन्य दोषों की भी शुद्धि करनी है । इसलिए जीवहिंसा संबंधी दोषों एवं अन्य दोषों से आत्मा की उत्तर - विशेष शुद्धि करना, इस सूत्र का लक्ष्य है । इसीलिए इस सूत्र का विधान है । जीवराशि को दुःख देने से हुई विराधना से अथवा किसी भी व्रत संबंधी हुई विराधना से मलिन बनी आत्मा की शुद्धि के लिए शास्त्र में बताए गए दस प्रकार के प्रायश्चित्त में इरियावहिया सूत्र द्वारा आलोचना एवं 1. १. आलोचना अर्थात् की हुई भूल को गुर्वादि से कहना, २. प्रतिक्रमण अर्थात् मिच्छा मि दुक्कडं' देना, ३. मिश्र अर्थात् पहला एवं दूसरा प्रायश्चित्त करना, ५. विवेक अर्थात् दूषित आहार वगैरह परठना, ५. कायोत्सर्ग अर्थात् दुःस्वप्नादि के संदर्भ में कायोत्सर्ग करना,
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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