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सूत्र संवेदना
अन्वय सहित संस्कृत छाया एवं शब्दार्थ : भगवन् ! इच्छाकारेण संदिसह ईरियावहियं पडिक्कमामि ? भगवन् ! इच्छाकारेण संदिशत ऐर्यापथिकी प्रतिक्रमामि ? हे भगवन् ! स्वेच्छा से आज्ञा दीजिए कि मैं ईर्यापथिकी प्रतिक्रमण करूँ? (गुरु कहे 'पडिक्कमेह' तु प्रतिक्रमण कर) इच्छं. इच्छामि चाहता हूँ (मैं आप की आज्ञा स्वीकारता हूँ) पडिक्कमिउं इच्छामि प्रतिक्रमितुम् इच्छामि । प्रतिक्रमण करना चाहता हूँ। ईरियावहियाए विराहणाए ऐर्यापथिक्याः विराधनायाः मैं ऐयापथिकी विराधना से गमणागमणे । गमनागमने । गमनागमन करने से पाण-कमणे, बीय-क्कमणे, हरिय-क्रमणे,
ओसा-उत्तिंग-पणग-दगमट्टी-मक्कडा-संताणा-संकमणे । प्राण-आक्रमणे, बीज-आक्रमणे, हरित-आक्रमणे, अवश्याय-उत्तिंग-पनक-दकमृत्तिका-मर्कट-संतान-संक्रमणे । प्राणियों को दबाने से, बीजों को दबाने से, हरी वनस्पति को दबाने से,
ओस की बूंदों को, चींटियों के बिलों को, पाँच वर्ण की कांइ, कीचड़, मकड़ी के जाले आदि को, खुंदकर व कुचलकर । मे जे एगिदिया, बेईदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया जीवा विराहिया मया ये एकेन्द्रियाः द्वीन्द्रियाः, त्रीन्द्रियाः, चतुरिन्द्रियाः, पञ्चेन्द्रियाः जीवाः विराधिताः । मुझसे जो एकेन्द्रिय जीव, बेइन्द्रिय जीव, तेईन्द्रिय जीव, चउरिन्द्रिय जीव एवं पंचेन्द्रिय जीव की विराधना हुई हो,