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________________ अब्भुट्टिओ सूत्र . १२५ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं : उनका ‘मिच्छा मि दुक्कडं' अर्थात् मेरे वे सब पाप मिथ्या हों । यहाँ बताए हुए सब प्रकार के अपराध से जो कोई भी दुष्कृत-पाप हुआ हो, वह मिथ्या हो, फल शून्य बने । इस प्रकार पूरे वाक्य का अर्थ है । मिच्छा मि दुक्कडं का विशेषार्थ : बहुत बार 'मिच्छा मि दुक्कडं' यह शब्द सोचे बिना ऐसे ही बोला जाता है, परन्तु आवश्यक नियुक्ति के आधार पर उसके प्रत्येक शब्द का वास्तविक अर्थ समझकर यदि उसमें बताए गए भावों के साथ यह शब्द बोला जाए, तो आत्मा में अवश्य ऐसे संस्कार पड़ते हैं कि जिस भूल का मिच्छा मि दुक्कडं दिया हो, वह भूल पुनः उसी प्रकार से, उसी तीव्रता से तो न ही हो। 'मि'3 = मृदुता : मृदु - मार्दव के अर्थ में है अर्थात् काया से नम्र और ___भाव से लघु बनकर माफी मांगने के लिए पहली जरूरत है - हृदय की कोमलता । कठोर हृदयवाला व्यक्ति ही दूसरों को दुःख, पीड़ा, तकलीफ दे सकता है या दूसरों के प्राण लेनेवाली क्रिया कर सकता है, इसलिए किसी भी भूल को सुधारनी हो, उस भूल के लिए खेद व्यक्त करना हो तो पहले हृदय को नम्र व मृदु बनाना चाहिए । अक्कड व्यक्ति के दिल में माफी मांगने का भाव प्रगट ही नहीं हो सकता । 'च्छा' = छादन : जो दोष लगे हों, उन दोषों को ढंककर याने कि उन दोषों का पुनः सेवन न हो, ऐसा संकल्प करना । दूसरी जरूरत है, 'यह पाप पुनः नहीं करूँगा', ऐसे संकल्प की। जब 3. मि त्ति मिउमद्दवत्ते, छ त्ति य दोसाण छायणे होइ । मि ति य मेराइट्ठिओ दु त्ति दुर्गच्छामि अप्पाणं ।। ६८६।। क त्ति कडं मे पावं, डत्ति य डेवेमि तं उवसमेणं । एसो मिच्छादुक्कडपयक्खरत्यो समासेणं ।।६८७।। - आवश्यकनियुक्ति-हारिभद्रीयवृत्तौ
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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