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श्री पंचिदिय सूत्र
पालन करनेवाले ही पाँच प्रकार के आचार का सम्यक् रीति से पालन कर सकते हैं और इसीलिए वे समिति एवं गुप्ति को जीवन में आत्मसात् कर सकते हैं । इस तरह दूसरे विभाग के १८ गुण भी उत्तरोत्तर विशिष्टतम हैं ।
छत्तीस गुणो गुरु मज्झ : ऐसे छत्तीस गुणों वाले मेरे गुरु हैं ।
अज्ञान का नाश करके जो सम्यग् ज्ञान का प्रकाश फैलाते है, भव्य जीवों को जो धर्म का उपदेश देते है, उन्हें गुरु13 भगवंत कहते है । गुरु भगवंत में उपर्युक्त छत्तिस गुण होते हैं। इन गुणों के कारण वे स्वयं भी सुखी होते हैं एवं अन्य को भी सुख का मार्ग दिखा सकते है । उनके सुख का मूल कारण यह है कि, वे दुःखदायक विषय कषाय के भावो से दूर रहते हैं एवं समता आदि सुखदायक भावों में स्थिर होने का प्रयत्न करते हैं। जिसके कारण बाह्य अनुकूलता या प्रतिकूलता में वे प्रशान्त रह सकते हैं। प्रत्यक्ष रुप से जब वे पूज्य मेरे सामने उपस्थित नहीं होते तब मैं इस सूत्र द्वारा उनकी मानसिक उपस्थिति स्वीकार करके सभी धर्मक्रिया करने की इच्छा रखता हूँ।
जो लोग अर्थ की विचारणा करते हुए यह सूत्र बोलते है, उनको ‘सद्गुरु भगवंत मेरे सामने ही है' - ऐसा एहसास होता है। फलतः क्रिया करते वक्त वीर्य और उल्लास की वृद्धि होती है एवं प्रमाद आदि दोष दूर रहते है। परन्तु जो लोग उपयोग के बिना मात्र शब्दोच्चार करके इस सूत्र से गुरु स्थापना करते हैं उनमें ऐसे भाव उत्पन्न नहीं होते । इसलिए सभी साधको को अर्थ की विचारणा पूर्वक सूत्र का उपयोग करना चाहिए।
13. गिरति अज्ञानम् इति गुरुः अर्थात् जो अज्ञान को दूर करें, वह गुरु अथवा गृणाति (उपदिशति)
धर्मम् इति गुरुः जो धर्म का उपदेश देते हैं, वे गुरु कहलाते हैं ।