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हाँ ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है। उत्तर : इस बात को हम भी स्वीकार करते हैं कि गुरु वंदनादि प्रत्येक क्रिया यत्नो से सोपयोग करनी चाहिये । पर अयतना देखकर उसे एकदम छोड ही नहीं देना चाहिए । जैसे श्रावक को सामायिक ३२ दोष वर्ज से करना कहा है । यदि किसी ने ३० दोष टाले, किसी ने २० दोष टाले, इसका अर्थ यह कदापि नहीं होता कि एक दोष भी न टालने से सामायिक को ही छोड देना चाहिए । इसी प्रकार कई देश, काल ऐसे ही होते हैं कि अनिच्छया जानबूझ के दोष का सेवन करना पडता है । जैसै साधुओं को पेशाब, टट्टी ग्राम नगर में नहीं परठाना, ऐसा शास्त्रों में आदेश है, पर वे देशकाल को देख, जानबूझकर इस दोष का सेवन करते हैं । ऐसे ऐसे एक नहीं पर अनेक उदाहरण विद्यमान है।
प्रश्न ६७ : बस अब में आपको विशेष कष्ट देना नहीं चाहता हूं। कारण में आपके दो प्रश्नों के उत्तर में हा सब रहस्य समझ गया, पर यदि कोई मुझसे पूछले तो