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हाँ ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है। कारण से उनके दो समय का वेदनीयकर्म का बंधन होता है। यदि साधु श्रावक को क्रिया में हिंसा होती है । नहीं तो वे समय समय पर सात कर्म क्यों बांधते हैं । इसका तो जरा विचार करो । जैसे पूजा की विधि में आप हिंसा मानते हो तो आपके गुरुवंदन में भी हिंसा क्यों नहिं मानते हों । उसमें भी तो असंख्य वायुकाय के जीव मरते हैं । साधु व्याख्यान देते समय हाथ उंचा नीचा करे, उसमें भी अगणित वायुकाय के जीव मरते हैं । इसी तरह आंख का एक वाल चलता है तो उस में भी अनेक वायुकाय के जीव मरते हैं । यदि देने का परिणाम शुभ होता है इससे उस हिंसा का फल नहीं होता, तो हमारी मूर्ति-पूजा से फिर कौन सा अशुभ परिणाम का फल होता है, जो सारा पाप इसी के सिर मढा जाय । महाशय ! जरा समदर्शी बनो ताकि हमारे आपके परस्पर नाहक का कोई मतभेद न रहे।
प्रश्न६६: पूजा यत्नों से नहीं की जाती है ?