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हाँ ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है। दूसरे तप, संयम, व्रत तो उदय ही नहीं हुए थे । यदि कोई कहे कि श्रेणिक ने जीवदया पाली उससे तीर्थंकर गोत्र बंधा, पर यह बात गलत है, कारण जीवदया से साता वेदनीयकर्म का बंध होना भगवती सूत्र श.८ उ. ५ में बतलाया है । इसलिए श्रेणिक ने अरिहंतो एवं सिद्धों की भक्ति करके ही तीर्थंकर गोत्रोपार्जन किया था।
प्रश्न ६५ : मूर्तिपूजा में हिंसा होती है, उसे आप धर्म कर्म मानते हो?
उत्तर : सिद्धांतों में मूर्तिपूजा की जो विधि बताई है, उसी विधि से भक्त जन पूजा करते हैं । इसमें जल चन्दनादि द्रव्यों को देख के ही आप हिंसा हिंसा की रट लगाते हो तो यह आपकी भूल है । यह तो पांचवे गुणस्थान की क्रिया है । पर छठे से तेरहवें गुणस्थान तक भी ऐसी क्रिया नहीं है कि जिसमें जीवहिंसा न हो । खुद केवली हलन चलन की क्रिया करते हैं, उनमें भी तो जीवहिंसा अवश्य होती हैं, इसी