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हाँ ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है। ७५ गौत्रकर्म की क्षय ।
८. मूर्तिपूजा में शक्ति का सदपयोग और द्रव्यादि का अर्पण करना अन्तराय कर्म को दूर कर देता है। ____ महेरबान ! परमात्मा की पूजा करने से क्रमशः आठ कर्मो की देश व सर्व से निर्जरा होती है मूर्तिपूजा का आनंद तो जो लोग पूर्ण भाव भक्ति और श्रद्धापूर्वक करते हैं वे ही जानते हैं जिनके सामने आज ४५० वर्षों से विरोध चल रहा हैं । अनेक कुयुक्तिएं लगाई जा रही हैं पर जिनका आत्मा जिनपूजा में रंगा गया है उनका एक प्रदेश भी चलायमान नहीं होता है । समझे न।
प्रश्न ५० : यह समझ में नहीं आता हैं कि अष्टमी चतुदर्शी जैसी पर्व तिथियों में श्रावक लोग हरी वनस्पति खाने का त्याग करते हैं जब भगवान को वे फल फूल कैसे चढा सकते हैं ?
उत्तर : यह तो आपके समक्ष में आ सकता है कि