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हाँ ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है। अष्टमी चतुर्दशी के उपवास (खाने का त्याग) करनेवाले घर पर आये हुए साधुओं को भिक्षा दे सकते हैं और उनको पुण्य भी होता है । जब आप खाने का त्याग करने पर भी दूसरों को खिलाने में पुण्य समझते हैं तो श्रावकों की पुष्पादि से पूजा करने में लाभ क्यों नहीं है ?
प्रश्न ५१ : साधुओं को तो फासुक अचित आहार देने में पुण्य है पर भगवान को तो पुष्पादि सचित पदार्थ चढाया जाता है और उसमें हिंसा अवश्य होती है ?
उत्तर : यह तो आपके दिल में किसम का भ्रम डाल दिया हैं । जहां जहां हिंसा का पाठ पढा दिया है पर इसका मतलब आपको नहीं समझाया है । हिंसा तीन प्रकार की होती है । (१) अनुबन्ध हिंसा, (२) हेतु हिंसा (३) स्वरुप हिंसा है । इसका मतलब यह है कि हिंसा नहीं करने पर भी मिथ्यात्व सेवन करना उत्सूत्र भाषण करना इत्यादि वीतरागाज्ञा विराधक जैसे जमाली प्रमुख, यह अनुबन्ध